गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण शिवपुराणहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
इनमें पूजा के उत्तरोत्तर आधार श्रेष्ठ हैं। पूर्व-पूर्व के अभाव में उत्तरोत्तर आधार का अवलम्बन करना चाहिये। दोनों नेत्रों तथा मस्तक के रोगमें और कुष्ठ रोग की शान्ति के लिये भगवान् सूर्य की पूजा करके ब्राह्मणों को भोजन कराये। तदनन्तर एक दिन, एक मास, एक वर्ष अथवा तीन वर्षतक लगातार ऐसा साधन करना चाहिये। इससे यदि प्रबल प्रारब्ध का निर्माण हो जाय तो रोग एवं जरा आदि रोगों का नाश हो जाता है। इष्टदेव के नाममन्त्रों का जप आदि साधन वार आदि के अनुसार फल देते हैं। रविवार को सूर्यदेव के लिये, अन्य देवताओं के लिये तथा ब्राह्मणों के लिये विशिष्ट वस्तु अर्पित करे। यह साधन विशिष्ट फल देनेवाला होता है तथा इसके द्वारा विशेषरूप से पापों की शान्ति होती है। सोमवार को विद्वान् पुरुष सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये लक्ष्मी आदि की पूजा करे तथा सपत्नीक ब्राह्मणों को घृतपक्व अन्न का भोजन कराये। मंगलवार को रोगों की शान्ति के लिये काली आदि की पूजा करे तथा उड़द, मूँग एवं अरहर की दाल आदि से युक्त अन्न ब्राह्मणों को भोजन कराये। बुधवार को विद्वान् पुरुष दधियुक्त अन्न से भगवान् विष्णु का पूजन करे। ऐसा करने से सदा पुत्र, मित्र और कलत्र आदि की पुष्टि होती है। जो दीर्घायु होने की इच्छा रखता हो, वह गुरुवार को देवताओं की पुष्टि के लिये वस्त्र, यज्ञोपवीत तथा घृतमिश्रित खीर से अर्चन-पूजन करे। भोगों की प्राप्ति के लिये शुक्रवार को एकाग्रचित्त होकर देवताओं का पूजन करे ओर ब्राह्मणों की तृप्ति के लिये षड्रस युक्त अन्न दे। इसी प्रकार स्त्रियों की प्रसन्नता के लिये सुन्दर वस्त्र आदि का विधान करे। शनैश्चर अपमृत्यु का निवारण करनेवाला है। उस दिन बुद्धिमान् पुरुष रुद आदि की पूजा करे। तिल के होम से, दान से देवताओं को संतुष्ट करके ब्राह्मणों को तिलमिश्रित अन्न भोजन कराये। जो इस तरह देवताओं की पूजा करेगा, वह आरोग्य आदि फल का भागी होगा।
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