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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


एक दिन घूमता-घामता वह दैवयोग से प्रतिष्ठानपुर (झूंसी-प्रयाग) में जा पहुँचा। वहाँ उसने एक शिवालय देखा, जहाँ बहुत-से साधु-महात्मा एकत्र हुए थे। देवराज उस शिवालय में ठहर गया, किंतु वहाँ उस ब्राह्मण को ज्वर आ गया। उस ज्वर से उसको बड़ी पीड़ा होने लगी। वहाँ एक ब्राह्मणदेवता शिवपुराण की कथा सुना रहे थे। ज्वर में पड़ा हुआ देवराज ब्राह्मण के मुखारविन्द से निकली हुई उस शिव-कथा को निरन्तर सुनता रहा। एक मास के बाद वह ज्वर से अत्यन्त पीड़ित होकर चल बसा। यमराज के दूत आये और उसे पाशों से बाँधकर बलपूर्वक यमपुरी में ले गये। इतने में ही शिवलोक से भगवान् शिव के पार्षदगण आ गये। उनके गौर अंग कर्पूर के समान उज्ज्वल थे, हाथ त्रिशूल से सुशोभित हो रहे थे, उनके सम्पूर्ण अंग भस्म से उद्भासित थे और रुद्राक्ष की मालाएँ उनके शरीर की शोभा बढ़ा रही थीं। वे सब-के-सब क्रोधपूर्वक यमपुरी में गये और यमराज के दूतों को मार-पीटकर, बारंबार धमकाकर उन्होंने देवराज को उनके चंगुल से छुड़ा लिया और अत्यन्त अद्भुत विमान पर बिठाकर जब वे शिवदूत कैलास जाने को उद्यत हुए, उस समय यमपुरी में बड़ा भारी कोलाहल मच गया। उस कोलाहल को सुनकर धर्मराज अपने भवन से बाहर आये। साक्षात् दूसरे रुद्रों के समान प्रतीत होनेवाले उन चारों दूतों को देखकर धर्मज्ञ धर्मराज ने उनका विधिपूर्वक पूजन किया और ज्ञानदृष्टि से देखकर सारा वृत्तान्त जान लिया। उन्होंने भय के कारण भगवान् शिव के उन महात्मा दूतों से कोई बात नहीं पूछी, उलटे उन सबकी पूजा एवं प्रार्थना की। तत्पश्चात् वे शिवदूत कैलास को चले गये और वहाँ पहुँचकर उन्होंने उस ब्राह्मण को दयासागर साम्ब शिव के हाथों में दे दिया। शौनकजीने कहा-महाभाग सूतजी! आप सर्वज्ञ हैं। महामते! आपके कृपाप्रसाद से मैं बारंबार कृतार्थ हुआ। इस इतिहास को सुनकर मेरा मन अत्यन्त आनन्द में निमग्न हो रहा है। अत: अब भगवान् शिव में प्रेम बढ़ानेवाली शिवसम्बन्धिनी दूसरी कथा को भी कहिये।

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