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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

विद्येश्वरसंहिता

अध्याय १

प्रयाग में सूतजी से मुनियों का तुरंत पापनाश करनेवाले साधन के विषय में प्रश्न


आद्यन्तमङ्गलमजातसमानभाव-
मार्य तमीशमजरामरमात्मदेवम्।
पच्चाननं प्रबलपञ्चविनोदशीलं
सम्भावये मनसि शङ्करमम्बिकेशम्।।

जो आदि और अन्त में (तथा मध्य में भी) नित्य मंगलमय हैं, जिनकी समानता अथवा तुलना कहीं भी नहीं है, जो आत्मा के स्वरूप को प्रकाशित करनेवाले देवता  (परमात्मा) हैं जिनके पाँच मुख हैं और जो खेल-ही-खेल में - अनायास जगत्‌ की रचना, पालन और संहार तथा अनुग्रह एवं तिरोभावरूप पाँच प्रबल कर्म करते रहते हैं, उन सर्वश्रेष्ठ अजर-अमर ईश्वर अम्बिकापति भगवान् शंकर का मैं मन-ही-मन चिन्तन करता हूँ।

व्यासजी कहते हैं- जो धर्म का महान् क्षेत्र है और जहाँ गंगा-यमुना का संगम हुआ है, उस परमपुण्यमय प्रयाग में, जो ब्रह्मलोक का मार्ग है, सत्यव्रत में तत्पर रहनेवाले महातेजस्वी महाभाग महात्मा मुनियों ने एक विशाल ज्ञानयज्ञ का आयोजन किया। उस ज्ञानयज्ञ का समाचार सुनकर पौराणिक शिरोमणि व्यासशिष्य महामुनि सूतजी वहाँ मुनियों का दर्शन करने के लिये आये। सूतजी को आते देख वे सब मुनि उस समय हर्ष से खिल उठे और अत्यन्त प्रसन्नचित्त से उन्होंने उनका विधिवत् स्वागत-सत्कार किया। तत्पश्चात् उन प्रसन्न महात्माओं ने उनकी विधिवत् स्तुति करके विनयपूर्वक हाथ जोड़कर उनसे इस प्रकार कहा-

'सर्वज्ञ विद्वान् रोमहर्षणजी! आपका भाग्य बड़ा भारी है, इसी से आपने व्यासजी के मुख से अपनी प्रसन्नता के लिये ही सम्पूर्ण पुराणविद्या प्राप्त की। इसलिये आप आश्चर्यस्वरूप कथाओं के भण्डार हैं- ठीक उसी तरह, जैसे रत्नाकर समुद्र बड़े-बड़े सारभूत रत्नों का आगार है। तीनों लोकों में भूत, वर्तमान और भविष्य तथा और भी जो कोई वस्तु है, वह आपसे अज्ञात नहीं है। आप हमारे सौभाग्य से इस यज्ञ का दर्शन करने के लिये यहाँ पधार गये हैं और इसी ब्याज से हमारा कुछ कल्याण करनेवाले हैं; क्योंकि आपका आगमन निरर्थक नहीं हो सकता। हमने पहले भी आप से शुभाशुभ तत्त्व का पूरा-पूरा वर्णन सुना है; किंतु उससे तृप्ति नहीं होती, हमें उसे सुनने की बारंबार इच्छा होती है।

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