गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण शिवपुराणहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
परमेश्वरि! ग्यारह मुखवाला जो रुद्राक्ष है, वह रुद्ररूप है। उसको धारण करने से मनुष्य सर्वत्र विजयी होता है। बारह मुखवाले रुद्राक्ष को केशप्रदेश में धारण करे। उसके धारण करने से मानो मस्तक पर बारहों आदित्य विराजमान हो जाते हैं। तेरह मुखवाला रुद्राक्ष विश्वेदेवो का स्वरूप है। उसको धारण करके मनुष्य सम्पूर्ण अभीष्टों को पाता तथा सौभाग्य और मंगल लाभ करता है। चौदह मुखवाला जो रुद्राक्ष है वह परम शिवरूप है। उसे भक्तिपूर्वक मस्तक पर धारण करे। इससे समस्त पापों का नाश हो जाता है। गिरिराजकुमारी! इस प्रकार मुखों के भेदसे रुद्राक्ष के चौदह भेद बताये गये। अब तुम क्रमश: उन रुद्राक्षों के धारण करने के मन्त्रों को प्रसन्नतापूर्वक सुनो। १. ॐ ह्रीं नम:। २. ॐ नम:। ३. ॐ क्लीं नम:। ४. ॐ ह्रीं नम:। ५. ॐ ह्रीं नम:। ६. ॐ ह्रीं हुं नम:। ७. ॐ हुं नम:। ८. ॐ हुं नम:। ९. ॐ ह्रीं हुं नम:। १०. ॐ ह्रीं नम:। ११. ॐ ह्रीं हुं नम:। १२. ॐ क्रौं क्षौं रौं नम:। १३. ॐ ह्रीं नम:। १४. ॐ नम:। इन चौदह मन्त्रों द्वारा क्रमश: एक से लेकर चौदह मुखवाले रुद्राक्ष को धारण करने का विधान है। साधक को चाहिये कि वह निद्रा और आलस्य का त्याग करके श्रद्धा-भक्ति से सम्पन्न हो सम्पूर्ण मनोरथों की सिद्धि के लिये उक्त मन्त्रों द्वारा उन-उन रुद्राक्षों को धारण करे।
रुद्राक्ष की माला धारण करनेवाले पुरुष को देखकर भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी तथा जो अन्य द्रोहकारी राक्षस आदि हैं वे सब-के-सब दूर भाग जाते हैं। जो कृत्रिम अभिचार आदि प्रयुक्त होते हैं वे सब रुद्राक्षधारी को देखकर सशंक हो दूर खिसक जाते हैं। पार्वती! रुद्राक्ष-मालाधारी पुरुष को देखकर मैं शिव, भगवान् विष्णु, देवी दुर्गा, गणेश, सूर्य तथा अन्य देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं। महेश्वरि! इस प्रकार रुद्राक्ष की महिमा को जानकर धर्म की वृद्धि के लिये भक्तिपूर्वक पूर्वोक्त मन्त्रों द्वारा विधिवत् उसे धारण करना चाहिये।
मुनीश्वर! भगवान् शिव ने देवी पार्वती के सामने जो कुछ कहा था, वह सब तुम्हारे प्रश्न के अनुसार मैंने कह सुनाया। मुनीश्वरो! मैंने तुम्हारे समक्ष इस विद्येश्वरसंहिताका वर्णन किया है। यह संहिता सम्पूर्ण सिद्धियों को देनेवाली तथा भगवान् शिव की आज्ञा से नित्य मोक्ष प्रदान करनेवाली है।
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