जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात सुकरातसुधीर निगम
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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...
नेता का सम्मान बचाने के लिए सुकरात ने अपने स्वभाव के विपरीत उत्तर दिया, ‘‘जहां तक मैं समझता हूँ साहस दिमाग को इस्तेमाल करने के अतिरिक्त कुछ नहीं हो सकता। कहा जा सकता है कि खतरे की चिंता न करते हुए उचित कार्य करना ही साहस है।’’
भीड़ में से कोई कहता है, ‘‘यह उत्तर ज्यादा ठीक लगता है।’’
लेकिन सुकरात को संतोष नहीं था। वे एक नए श्रोता की ओर मुडे़ और पूछा, ‘‘क्या हम फिलवक्त मान लें कि साहस एक उत्तम अटल विचार है? साहस प्रत्युत्पन्नमति है और ऐसे मामले में भावनाओं का होना वितरीत बात होगी क्योंकि भावनाएं मस्तिष्क को धुंधला कर देती हैं।’’
प्रश्नों की यह श्रृंखला और आगे बढ़ी।
अपने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए सुकरात दूसरों से अनेक प्रश्न करते थे। दूसरे व्यक्तियों के विचारों के परीक्षण के लिए सटीक, सर्तक और विस्तारपूर्वक प्रश्न पूछने की जिस शैली का सुकरात ने विकास किया था उनके शिष्य प्लेटो ने उसे द्वन्द्वात्मक शैली की संज्ञा दी है। सुकरात का उद्देश्य किसी तरह का ज्ञान देना नहीं बल्कि व्यक्ति की अज्ञानता प्रमाणित करना था। इस प्रकार सुकरात को तर्कशास्त्र का जन्मदाता भी माना जा सकता है।
साहस के बारे में, जिसके संबंध में ऊपर चर्चा हुई है, सुकरात के अपने व्यक्तिगत अनुभव थे। उनके श्रोता जानते थे कि सुकरात ने पदाति सेना में हॉपलाइट योद्धा के रूप में पोतीदेआ (432-430 ई0पू0), डेलियम (424 ई0पू0) एवं (संभवतः) आँफीपोलिस (442 या 437-436 ई0पू0) के युद्धों में एथेंस की ओर से भाग लिया था। पोतीदेआ के युद्ध में शांत, दृढ़ व्यवहार और शारीरिक सहनशीलता प्रदर्शित करते हुए उन्होंने विख्यात हठी राजनीतिज्ञ अल्किविआदिस के जीवन की रक्षा की थी। दार्शनिक की इस वीरता का प्रशस्ति-वर्णन प्लेटो ने अपनी सिंपोजियम में किया है।
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