जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात सुकरातसुधीर निगम
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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...
मृत्यु की प्रतीक्षा
सुकरात को उनकी प्रतिष्ठा के अनुरूप जेल में एक विशाल कक्ष में लाया गया। सुबह से न्यायालय में खड़े रहने के कारण उनके पैर शिथिल हो रहे थे, अतः वह खाट पर लेट गए। आँखें बंदकर चिंतन करने लगे। विषाद को प्रसाद बनाने का वार्धक्य का महिमामंडित विवेक उनके भीतर जाग्रत था। न्यायालय का निर्णय जो भी रहा हो परंतु एथेंस की तमाम जनता अश्रद्धेय नहीं नमस्य है। इसी बीच उन्हें नींद आ गई। उन्हें एक स्वप्न आया और आदेश मिला कि खाली समय में लेखन कार्य करो। पहले सूर्य-स्त्रोत की रचना करो फिर ईसोप की नीति कथाओं का पद्यानुवाद करो।
तभी किसी ने उन्हे जोर से नमस्कार किया। उन्होंने आँखें खोलकर देखा कि जेलर सामने खड़ा है। वे उठने को हुए कि उसने हाथ के इशारे से मना कर दिया। उसने सात्विक विनम्रता से कहा, ‘‘मृत्यु से भयंकर मृत्यु की प्रतीक्षा होती है। मैं यही बताने का दुखद कार्य करने आया हूं कि आपको जहर का प्याला एक माह बाद दिया जाएगा।’’
निश्चल निर्लिप्तता से सुकरात ने पूछा, ‘‘मुझे ज्ञात है। पर क्या मैं कारण जानने का अधिकारी हूं?’’
‘‘अवश्य। क्रीट देश के डेलोस नामक पवित्र स्थान को प्रतिवर्ष की भांति आज भेजे जाने वाले जहाज की सेहराबंदी हुई है। यह जहाज एक माह बाद लौटकर आएगा। एक माह का समय एथेंस में पवित्र पर्व की तरह मनाया जाता है और इस बीच किसी अपराधी को मृत्युदंड देकर नगर को अपवित्र नहीं किया जाता।’’
सुकरात इस परंपरा से परिचित थे, तथापि उन्होंने जिज्ञासा-वृत्ति बनाए रखी। पूछा, ‘‘इसकी पृष्ठभूमि में कोई मिथक हो तो बताने की कृपा करें।’’
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