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जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात

सुकरात

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10548
आईएसबीएन :9781613016350

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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...


सुकरात की वक्तृता थोड़ी कठोर होती जा रही थी। वे कह रहे थे, ‘‘एथेंसवासियों, मैं अपने बचाव में कोई दलील नहीं देना चाहता... लेकिन तुम्हारे लिए कहता हूं कि मेरी भर्त्सना करके तुम उस ईश्वर के विरुद्ध पाप नहीं करो जिसने मुझे तुम्हें उपहार के रूप में दिया है। यदि तुम मुझे मृत्युदंड देते हो तो तुम्हें आसानी से मेरा उत्तराधिकारी नहीं मिल पाएगा क्योंकि मैं ईश्वर द्वारा भेजी गई वह अश्व-मक्खी हूं जो एथेंस जैसे शानदार किंतु सुस्त घोड़े को डंक मार कर, उस पर भिनभिनाकर, उसे जगाती और प्रोत्साहित करती रहती है।’’

सुकरात ने अपने कथन से जूरी को अपने विरुद्ध कर लिया। उनके लिए वह ऐतिहासिक मतदान होता है जिसमें एथेंस के मूर्ख नागरिक बाइबिल के इस कथन को सिद्ध करते हैं कि मसीहा का अपने ही देश में सबसे ज्यादा निरादर होता है।

जनसमुदाय सुकरात के विपक्ष में मत देता है। भाग्य देवता सुकरात के सामने जहर (हेमलॉक) का प्याला रखने को विवश हो जाते हैं। मृत्युदंड देने के लिए 501 में से 280 मत सुकरात के विपक्ष में पड़े और 221 उनके पक्ष में। न्यायालय ने सुकरात को मृत्युदंड का विकल्प सुझाने का प्रस्ताव रखा।

सुकरात ने कहा ‘‘मैं इतना गरीब हूं कि अर्थ दंड नहीं दे सकता। अतः सजा के रूप में मेरे लिए शेष जीवन के भरण-पोषण की व्यवस्था ‘प्रितनियम’ (नगर भवन) में जनता के व्यय पर हो।’’

इस प्रकार का प्रस्ताव किसी भी प्रकार के दोषारोपण को स्वीकार न करने के समतुल्य था। जूरी के सदस्यों को सुकरात का यह अंतिम परिहास भी इतना आपत्तिजनक लगा कि निर्दोष मानने वाले सदस्यों में से 81 ने तुरंत पाला बदलकर विपक्ष में चले गए। सुकरात को मृत्यु दंड दिए जाने के प्रस्ताव का समर्थन करने वाले सदस्यों की संख्या बढ़कर 361 हो गई थी। इस पर भी सुकरात मृत्युदंड से बच सकते थे किंतु मित्रों के आग्रह के बावजूद उन्होंने निर्वासित होने के बजाय जहर का प्याला पीना श्रेयकर समझा।

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