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जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात

सुकरात

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10548
आईएसबीएन :9781613016350

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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...


मेलतोस- नहीं।

सुकरात- इसका अर्थ है कि तुमने मेरे ऊपर गलत आरोप लगाया है। मैं जानबूझकर युवकों को बिगाड़कर स्वयं क्यों हानि उठाना चाहूंगा ! अगर अनजाने में मुझसे यह काम हुआ है तो तुम्हें चाहिए था कि मुझे ऐसा करने से मना करते। ...क्या तुम ऐसे युवकों को अदालत के सामने पेश कर सकते हो जिन्हें तथाकथित रूप से मैंने भ्रष्ट किया है ?

मेलतोस- मैं उनकी सूची दे सकता हूं।

सुकरात- अर्थात् वह सूची आपके पास इस समय है नहीं। यदि मैंने एथेंस के नवयुवकों को भ्रष्ट किया होता तो आज जो बड़े हो गए हैं वे आकर कहते कि सुकरात तुमने युवावस्था में हमें भ्रष्ट किया या फिर मेरे द्वारा भ्रष्ट युवकों के भाई, पिता आदि मेरे विपक्ष में खड़े होते।

एथेंस के अधिकांश लोग 30-40 वर्षों से सुकरात को जानते थे। यह मस्तमौला, फक्कड़ और दार्शनिक कुछ लोगों को सोफिस्टों की तरह लगता होगा जो धन लेकर युवकों को नए विचारों के नाम पर परम्पराओं, देवताओं से विद्रोह करना सिखाते थे। ऐसा प्रतीत होता है कि सुकरात द्वारा सोफिस्टों की तरह व्यवहार करने के कारण एथेंस के सामान्य नागरिक दोनों में भेद नहीं करते थे। संकट की घड़ी में युवकों के परम्परा विरुद्ध कार्यों को सहज ही पतन के कारण के रूप में देखा जाता था और अंततः उत्तरदायी उन युवकों के शिक्षकों को ठहराया जा सकता था। तथापि यह ऐसा ठोस कारण नहीं था जो अभियोग का आधार बन सके।

मुकदमा शुरू होते ही धुरंधर वक्ता लिसिअस ने सुकरात के लिए एक लम्बा रक्षात्मक भाषण लिखा था। सुकरात ने उसे पढ़ा और विनम्रतापूर्वक अपने मित्र को वापस कर दिया। वे कानूनी सलाह नहीं लेना चाहते थे।

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