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जीवनी/आत्मकथा >> सुकरात

सुकरात

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10548
आईएसबीएन :9781613016350

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पढिए सत्य और न्याय की खोज करने वाले सुकरात जैसे महामानव की प्रेरक संक्षिप्त जीवनी जिसने अपने जीवन में एक भी शब्द नहीं लिखा- शब्द संख्या 12 हजार...



मुकदमें के दौरान

399 ई0पू0 में 70 वर्षीय सुकरात को अदालत में घसीटा गया। उन पर दो आरोप लगाए गए। प्रथमतः, कुतर्कों को भी तर्कमय बनाकर वे युवा पीढ़ी को भ्रष्ट कर रहे हैं और उन्हें स्वतंत्र चिंतन की शिक्षा देकर बुरे चाल-चलन की ओर प्रेरित कर रहे हैं; द्वितीयतः वे पारंपरिक देवी देवताओं की पूजा की उपेक्षा कर उनके स्थान पर नवीन विलक्षण क्रियाकलापों के जन्म देकर अधर्म कर रहे हैं।

आरोप लगाने वाले व्यक्ति थे अनीतोस, लीकोन और मेलतोस। अनीतोस की ख्याति एक उत्तरदायी और देशभक्त राजनीतिज्ञ के रूप में थी। उसके अन्य दो सहयोगियों के विषय में कोई पुष्ट सूचना नहीं मिलती। परंतु सुकरात इनका नाम तो नहीं लेते पर संकेत देते हैं कि ये वे लोग हैं जिनकी, डेल्फी द्वारा सुकरात को एथेंस का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति घोषित किए जाने पर और उसे असत्य सिद्ध करने की प्रक्रिया में, सुकरात ने परीक्षा ली थी। असफल सिद्ध होने पर सुकरात ने उन्हें उनके अज्ञान से परिचित कराने का प्रयत्न किया तो वे कुपित हो उठे। अपनी झेंप मिटाने के लिए वे सुकरात के विरुद्ध प्रचार करते रहे। अतः बदला लेने की भावना ने तीनों को जोड़ा और संगठित होकर अदालत में उन्होंने आरोप लगाए। प्राचीन एथेंस और दूसरे स्थलों से ऐसे अनेक अभियोगों की कार्यवाही के उदाहरण मिलते हैं जिसके मूल में व्यक्तिगत कारण थे।

बसंत की एक सुहावनी सुबह को मुकदमें की कार्यवाही प्रारंभ हुई। नास्तिकता का आरोप भी होने के कारण एक्रान नामक राजा को प्रधान न्यायाधीश बनाया गया। जूरी के 501 सदस्य थे। निर्धारित समय पर प्रधान न्यायाधीश एक्रान अपने भव्य आसन पर आकर विराजमान हो गए। जूरी के सदस्य चादरों से आवृत्त बेंचों पर बैठ गए। सामने स्थित दो मंचों पर सुकरात ओर आरोपकर्ता खड़े हो गए। प्लेटो की अपोलोगिया के अनुसार आरोपकर्ताओं में से सिर्फ मेलतोस ही उपस्थित था। लम्बा, पतले बालों वाला, टेढ़ी नाक तथा विरल दाढ़ी से युक्त मेलतोस एक असफल कवि था। मुकदमें की कार्यवाही देखने के लिए अनेक नागरिक उपस्थित थे। उन्हीं में सुकरात के कई शिष्य खड़े थे। प्लेटो भी उपस्थित था। प्लेटो की आयु 28 वर्ष की थी अतः वह मत देने का अधिकारी नहीं था। 30 वर्ष या उससे अधिक के हर व्यक्ति को मत देने का अधिकार था।

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