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जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर

सिकन्दर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :82
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10547
आईएसबीएन :9781613016343

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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...


उसे बादशाह नेबूशदनेज्जर के महल में ले जाया गया। सैनिक और अधिकारी उसे देखने के लिए आते, तो वह सिर्फ हाथ हिलाकर उनका अभिवादन स्वीकार करता। आंखों की मौन भाषा में उनका कुशल-क्षेम पूछता, पर उस भाषा को कोई समझ न पाता। अंततः विश्व एकता का स्वप्न देखने वाला, सारे संसार को विजित कर विश्व-बधुत्व की डोर से बांधने का सपना पालने वाला मकदूनिया से उदय हुआ सिकंदर नाम का यह सूर्य ईसा पूर्व 323 की 13 जून को सूर्यास्त के समय अस्त हो गया। कदाचित यही उसके लिए श्रेष्ठ था। विश्व गगन पर वह लगभग 33 वर्ष तक चमका था। उसने 12 वर्ष आठ महीने तक शासन किया।

सिकंदर की मृत्यु का कारण सदैव विवादों में रहा। उसकी चिकित्सा कर रहे चिकित्सक या तो उसकी बीमारी नहीं समझ पाए या उन्हें चुप करा दिया गया क्योंकि उनमें से किसी का कथन उपलब्ध नहीं है। डियोडोरस, प्लूटार्क, एरियन और जस्टिन जैसे इतिहासकार कभी जहर से मृत्यु होना बताते फिर इससे पलट जाते। गुर्दे का फट जाना भी मृत्यु का कारण बताया गया। आधुनिक शोधों में बताया गया कि उसे नसों का पक्षाघात था जो पैरों से धीरे-धीरे ऊपर चढ़ता है। इस बीमारी के कारण शव कई दिनों तक विकृत नहीं होता। सिकंदर का शव भी अविकृत रहा था।

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