जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर सिकन्दरसुधीर निगम
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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...
पश्चिमोत्तर भारत में सिकंदर
बैक्ट्रिया (बल्ख) में प्रांतीय उपनिवेश की स्थापना करने के बाद सिकंदर ने चिर अभिलाषित भारत की ओर प्रयाण किया। काबुल के मुख्य मार्ग से होते हुए उसने हिंदुकुश पर्वत पार किया। नवनिर्मित सिकंदरिया पहुंचकर नए क्षत्रप की नियुक्ति की। यहां से ईसा पूर्व 326 में भारत के सबसे निकटवर्ती प्रदेश निकैया पहुंचा। यहीं तक्षशिला के राजा आम्भी ने अपने दरबारियों के साथ सिकंदर के समक्ष आत्मसमर्पण किया। 80 हाथी तथा अन्य बहुमूल्य भेटें दीं। सिकंदर की आधीनता स्वीकार करने के बाद उसे पूर्ण सहायता का आश्वासन देकर देश के प्रति विश्वासघात किए जाने वाले इतिहास का पहला पृष्ठ अपने नाम कर लिया। आम्भी ने झेलम और चेनाव के मध्य स्थित राज्य पर शासन करने वाला राजा पोरस या पुरु के संबंध में सूचनाएं दीं।
सिकंदर ने अपनी सेना को दो भागों में विभक्त कर एक भाग को हेफास्तिओन और पैरदिकास नामक सेनापतियों के आधीन कर उन्हें काबुल नदी के किनारे-किनारे चलकर खैबर दर्रे से होते हुए सिंधु नदी तक पहुंचने का आदेश दिया। सेना के दूसरे भाग का नेतृत्व स्वयं करते हुए उसने हिंदुकुश के दक्षिणी पादगिरि में कुनर नदी के तट पर बसी अस्पेसियनों की राजधानी पर अधिकार कर उसमें आग लगा दी। 40 हजार लोगों को दास बनाया और 23 हजार गाय बैलों की संपत्ति पर अधिकार किया। गौरी (या पंचकोसा) नदी के तट पर बसे गोरिअनों पर अधिकार किया। कोफेन और सिंधु नदी के मध्य इलाके में स्थित अश्वकों की राजधानी मसगा (मसकावती) में सिकंदर को पहली बार कड़ा मुकाबला करना पड़ा। मसगा का दुर्ग अत्यंत दृढ़ था। भयंकर युद्ध हुआ। अश्वकों का सेनापति मारा गया। सिकंदर भी घायल हुआ। आत्मसमर्पण करके अश्वकों के नगर से चले जाने की संधि हुई। रात में वे शिविरों में ठहरे थे। तभी शिविरों पर हमला करके सिकंदर ने भीषण नरसंहार किया। युद्ध में स्त्रियों के भाग लेने के कारण उन्हें चुन-चुन कर मारा गया।
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