जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर सिकन्दरसुधीर निगम
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जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...
व्यक्ति और व्यक्तित्व
अधिकतर इतिहासकार सिकंदर की युद्ध-सफलताओं से इतने अभिभूत रहे हैं कि उन्होंने व्यक्ति-सिकंदर और उसकी निजता के संबंध में बहुत कम लिखा है। तथापि कुछ इतिहासकारों, जीवनीकारों ने तत्कालीन अभिलेखों, संस्मरणों, शिल्प-मूर्तियों के आधार पर व्यक्ति सिकंदर का जो खाका खींचा है उसके अनुसार सिकंदर शारीरिक रूप से आकर्षक नहीं था। व्यक्ति की लम्बाई के मकदून प्रतिमान से वह काफी छोटा था पर उसकी देह स्थूल और बलिष्ठ थी। एक प्रकार से अकबर का प्रतिरूप था। उसकी दाढ़ी विरल थी जिसे अक्सर वह साफ किए रहता था। उसकी गरदन का झुकाव बाई ओर ख़म लिए रहता था जिससे लगता कि वह ऊपर किसी विशेष कोण की ओर देख रहा है। उसकी एक आंख रात्रि की तरह काली और दूसरी आसमान की तरह नीली थी जिससे उसकी स्त्रियों के प्रति उदासीनता प्रकट होती थी। उसका वर्ण उज्ज्वल था, आवाज कर्कश थी।
एरिसटक्सीनस के संस्मरणों के अनुसार, महाभारत की मत्स्यगंधा की तरह, उसकी त्वचा से मनमोहक सुगंध निकलती थी जिससे उसके सभी वस्त्र आपूरित रहते थे। उसके मुख में सुवास का वास था। दोनों सुगंधें मिलकर मनमोहक प्रभाव छोड़ती थीं।
सिकंदर के माता-पिता के सम्मिलित प्रभाव ने उसके व्यक्तित्व को एक दृढ़ता प्रदान की। उसकी मां ओलिम्पीआस स्वयं एक महत्वाकांक्षी महिला थी। उसने अपने पुत्र को यह विश्वास करने के लिए प्रोत्साहित किया कि उसमें देवत्व होने के कारण वह पारसीक साम्राज्य ही नहीं पूरे विश्व पर विजय प्राप्त कर सकता है। मां के प्रभाव ने उसमें एक नियति के भाव का स्थापन किया जिससे उसकी महत्वाकांक्षाएँ समय से पूर्व ही पूर्ण होने के लिए उद्धित हो उठीं। इसके साथ ही फिलिप की ईष्यालु पत्नी के उन्माद, आवेश, अभिमान जैसे दुर्गुण के बीज उसे माता से ही मिले। इससे उसका स्वभाव क्रोधी और असंयमित हो गया परंतु अन्य प्रेरणाओं से, शिक्षा से उसका मस्तिष्क व्यावहारिक ही बना रहा।
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