लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सिकन्दर

सिकन्दर

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :82
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10547
आईएसबीएन :9781613016343

Like this Hindi book 0

जिसके शब्दकोष में आराम, आलस्य और असंभव जैसे शब्द नहीं थे ऐसे सिकंदर की संक्षिप्त गाथा प्रस्तुत है- शब्द संख्या 12 हजार...


अगले वर्ष कारिया के पारसीक क्षत्रप पिक्सोडेरस ने सिकंदर के सौतेले भाई फिलिप अर्रहीडाओस से अपनी बड़ी बेटी की शादी का प्रस्ताव रखा। ओलिम्पीआस, सिकंदर व उसके कई मित्रों की राय थी कि कदाचित फिलिप अपना उत्तराधिकारी अर्रहीडाओस को बनाना चाहता है। कोरिंथ के एक अभिनेता थेसालोस को भेजकर सिकंदर ने पारसीक क्षत्रप से कहलाया कि वह अपनी पुत्री का हाथ एक अवैध पुत्र के हाथ में देने के स्थान पर सिकंदर को दे। फिलिप को जब यह पता चला तो उसने शादी की वार्ता बंद करा दी और सिकंदर को बुलाकर फटकारा। उसने कहा कि वह उसके लिए एक अच्छी पत्नी लाना चाहता है। सिकंदर को गलत राय देने के अपराध में फिलिप ने उसके मित्रों हरपातोस, नोआर्खोस, टालमी, और एरीजीअस को देश निकाला दे दिया और कोरंथवासियों से कहा कि थेसालोस को जंजीर में बांध कर उसके सामने पेश करें।

ईसा पूर्व 336 में फिलिप की पुत्री का विवाह पत्नी ओलिम्पीआस के भाई इपीरोस के राजा अलैक्ज़ेडर प्रथम से हो रहा था, उसी समय फिलिप की हत्या कर दी गई। चारो ओर अफरातफरी मच गई। प्रत्यक्ष दिखाई देने वाला हत्यारा फिलिप के सुरक्षा-दल का कप्तान पौसनिआस था। हत्या करके वह भागा परंतु दुर्भाग्य से अंगूर की बेल में पैर उलझ जाने कारण गिर पड़ा। उसका पीछा करने वालों ने उसे पकड़ा नहीं परंतु वहीं मार दिया जिससे हत्या के षड़्यंत्र के सूत्र मिट गए। इसी के साथ सिकंदर के दो मित्र पैरदिकास और लियोनाटोस भी मार दिए गए। बाद में, दबी जुबान से, कहा गया कि इस हत्याकांड के पीछे सिकंदर का हाथ है पर इस जघन्य अपराध को सिद्ध करने के लिए उसके विरुद्ध सूक्ष्मतम साक्ष्य भी न था। सिकंदर की मां के इसमें सम्मिलित होने की संभावना बताई गई क्योंकि जगजाहिर था कि वह फिलिप से ईष्र्या करती थी और सिकंदर को उसके विरुद्ध भड़काती रहती थी। बहरहाल रहस्य की रेखाओं से घिरे इस कांड की गुत्थी अनसुलझी रह गई और सिकंदर के राजा बनने पर धीरे-धीरे लोग इस घटना को भूल गए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book