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इतिहास और राजनीति >> शेरशाह सूरी

शेरशाह सूरी

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :79
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10546
आईएसबीएन :9781613016336

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अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...


फरीद ने अफगान सैनिकों और घुड़सवारों की सहायता से विद्रोही जमींदारों पर हमला कर दिया। विद्रोही जमींदार भाग गए। उनके अरक्षित गांवों को लूटकर उनके स्त्री, बच्चों, पशुओं और संपत्ति को अपने अधिकार में ले लिया। लूट में प्राप्त धन और पशु सैनिकों में बांट दिए। उसने विद्रोही सरदारों को संदेश भेजा कि अगर मेरी अधीनता स्वीकार कर लोगे तो तुम्हारे बीबी बच्चों को वापस कर दूंगा अन्यथा उन्हें बेच दूंगा। इस चेतावनी से भयभीत होकर विद्रोही जमीदारों ने आत्मसमर्पण कर दिया और आज्ञा-पालन करने का वचन दिया। जमानत लेकर बीबी-बच्चे छोड़ दिए गए।

फिर भी कुछ हठी जमींदारों ने आत्मसमर्पण नहीं किया। फरीद ने एक दिन सुबह तड़के विद्रोही जमींदारों पर हमला कर दिया। सारे विद्रोहियों को उसने मौत के घाट उतार दिया। उनके बीबी बच्चों को दास बनाकर सैनिकों को दे दिया। खाली गांवों में वफादार लोगों को बसा दिया। बचे-खुचे जमींदारों ने आत्मसमर्पण कर दिया और चोरी-डाके से तोबा कर ली।

फरीद के इस प्रबंध कौशल से बड़ा लाभ यह हुआ कि उसके परगने के किसान निश्चिंत होकर खेती करने लगे। इतना ही नहीं, किसानों को यह अनुभव हुआ कि शासन चलाने और शांति-व्यवस्था बनाए रखने में वे मदद कर रहे हैं। लगान उगाहने वाले कारिंदों का वेतन और भत्ता नियत कर दिया गया। इससे कारिंदों के स्वार्थ पर चोट तो पड़ी पर अत्याचार सदा के लिए समाप्त हो गया। कृषकों और सैनिकों को अपनी शिकायतें स्वयं उपस्थित होकर पेश करने का मौका मिला। फरीद शिकायतों की जांच कर उचित फैसला करता।

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