इतिहास और राजनीति >> शेरशाह सूरी शेरशाह सूरीसुधीर निगम
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अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...
15वीं शताब्दी में ही फरीद ने देश की अर्थ-व्यवस्था का मूलाधार कृषि को घोषित किया। उसने कहा, ‘‘किसान ही सम्पन्नता का स्रोत हैं।’’ वास्तविक स्थिति उस समय और आज भी यही है कि किसान ही देश की संपदा बढ़ाने का मूल साधन है। वह जानता था कि यदि किसान संपन्न होंगे तो पैदावार अधिक कर सकेंगें।
फरीद ने मुकद्दमों (मुखियों) और पटवारियों, सैनिकों और कृषकों को एक साथ अपने दरबार में बुलाया। किसानों से कहा, ‘‘तुम भूमिकर जिंस (अनाज) या नकद, जैसी इच्छा हो दे सकते हो। तुम्हें सिर्फ निर्धारित कर ही देना होगा। आप अन्य किसी कर का भुगतान न करें। आप लोगों को जो भी कष्ट हो सीधे मुझसे आकर कहिए। आपके ऊपर अत्याचार करने वालों को मैं कभी क्षमा नहीं करूंगा। मैं किसानों की एक सेना भी गठिन करूंगा। उन्हें प्रशिक्षण और हथियार दिए जाएंगे ताकि वे अपने तथा किसान भाइयों के प्रति किए जाने वाले अन्याय का प्रतिकार कर सकें।’’
इसके बाद फरीद ने कारकुनों को संबोधित किया। कहा, ‘‘मैं यह जानता हूं कि कर वसूल करते समय तुम लोग किसानों के साथ कठोर व्यवहार करते हो। अतः मैंने जरीबाना (सर्वेक्षण शुल्क) और महासिलाना (कर संग्रह शुल्क) नामक कर फसल को ध्यान में रखते हुए उदारतापूर्वक निश्चित कर दिए हैं जिससे यदि तुम इन निर्धारित करों से ज्यादा किसानों से वसूल करोगे तो वह रकम तुम्हारे हिसाब से काट ली जाएगी। ध्यान रहे इन करों का हिसाब मैं खुद अपने सामने लिया करूंगा। कर फसल होने पर वसूल किए जाएं। निश्चित कर समय से वसूल किए जाएं। यदि कोई किसान बहाना करते हुए लगान देने से बचने की कोशिश करे तो शासक को ऐसी कठोरता का व्यवहार करना चाहिए जिससे दूसरे किसानों को कर दबाने में भय लगे। पर किसी असहाय किसान पर अत्याचार न करें। मैं खुद देखूंगा कि किसानों को अत्याचारजन्य कष्ट न उठाने पड़ें। मैं आपके हितों की रक्षा करूंगा।’’
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