इतिहास और राजनीति >> शेरशाह सूरी शेरशाह सूरीसुधीर निगम
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अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...
अल्पकाल विद्या सब पाई
कुछ दिनों बाद जमालखान पूर्वी प्रांत जौनपुर का सूबेदार बना दिया गया। हुसैन भी सपरिवार उसके साथ चला गया और सहसराम में बस गया। अपने स्वामी की मेहरबानी से उसे सहसराम और खबासपुर टांडा जागीर के रूप में मिल गए। अब हसन एक बड़ी जागीर का मालिक था लेकिन उसका पारिवारिक जीवन कलहपूर्ण था क्योंकि वह फरीद के सौतेले भाइयों पर विशेष कृपा रखता था। पिता से नाराज होकर ही फरीद जौनपुर चला आया था जो प्रांतीय राजधानी थी और शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था। फरीद को प्रारंभिक जीवन से ही संघर्ष करना पड़ रहा था जिससे उसका मन-मस्तिष्क एक नायक के चरित्र में ढलने लगा। कई विषयों के अध्ययन के लिए अथक प्रयत्न करते हुए उसने इतिहास और महापुरुषों की जीवनियों पर विशेष ध्यान दिया।
फारसी में पारंगत होने के बाद अरबी सीखी। गुलिस्तां, बोस्तां और सिकंदरनामा उसे कंठस्थ हो गईं। तीन वर्षों में उसने मौलवी का पद प्राप्त कर लिया। साहित्य के अध्ययन के साथ फरीद ने सैनिक शिक्षा तथा प्रशासन की बारीकियों की ओर विशेष ध्यान दिया। प्रजा पर प्रभाव रखने वालें संतों और विद्वानों से उसने मैत्री कर ली। बुद्धिमत्ता, सद्व्यवहार, परिश्रमशीलता, व्यवहार-कुशलता और पौरुष जैसे उसके व्यक्गित गुण निखर कर आए जिससे जौनपुर में उसने बड़ी ख्याति प्राप्त कर ली। उसके गुणों की सुगंध सूबेदार जमाल खान तक पहुंची तो वह भी प्रभावित हुए बिना न रहा। उसे आश्चर्य तब हुआ जब उसे ज्ञात हुआ कि ऐसे सद्गुणी युवक से उसका पिता हसन सिर्फ एक स्त्री के कारण विमुख है।
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