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इतिहास और राजनीति >> शेरशाह सूरी

शेरशाह सूरी

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :79
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10546
आईएसबीएन :9781613016336

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अपनी वीरता, अदम्य साहस के बल पर दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा जमाने वाले इस राष्ट्रीय चरित्र की कहानी, पढ़िए-शब्द संख्या 12 हजार...


दंढ के प्रकार थे- कैद, जुर्माना, कोड़े लगाना, अंग भंग तथा प्राण दंड। चोरी व डकैती के लिए अक्सर प्राण दंड दिया जाता था। प्रत्येक आमिल और शिकदार को आदेश थे कि यदि उनके क्षेत्र में चोरी या डाके की घटना होती है और अपराधी को पकड़ा नहीं जा सका है तो समीप के गांव के मुखियों को बंदी बना लेना चाहिए और उनसे क्षतिपूर्ति करवा लेनी चाहिए। ऐसी न्याय व्यवस्था सुल्तान हैदर अली (1761-82) ने अपने राज्य में की थी। हत्या के मामले में अपराधी का पता न चलने पर मुखिया को स्वयं प्राणदंड का भागी बनना पड़ता था। ऐसे कठोर नियम अमानवीय लग सकते हैं पर शेरशाह अपने अनुभव से जानता था कि किसी गांव में चोरी, डाका, या हत्या मुखियों के सहयोग से ही हो सकती है।

इसका अर्थ यह नहीं था कि चोरियां नहीं होती थीं। तारीखे दाउदी में गावों से संबंधित दो आपराधिक घटनाओं का उल्लेख मिलता है। एक बार थानेश्वर के पड़ाव से रात में शेरशाह का घोड़ा चोरी चला गया। इसके लिए सौ मील की दूरी तक बसे मुखियों को बुलाया गया। उन्हें शेरशाह ने चेतावनी दी कि तीन दिन के भीतर घोड़ा न मिलने पर उन सबको मृत्यु दंड दिया जाएगा। उन्होंने कुछ ही समय में चोर को ढूंढ़ निकाला जिसे फांसी पर चढ़ा दिया गया।

दूसरी घटना एटा में घटी। भूमि-विवाद में एक कृषक की हत्या कर दी गई। बहुत खोज के बाद जब हत्यारे का पता न चला तो शेरशाह ने एक सैनिक को घटनास्थल पर लगे एक पेड़ को काटने की आज्ञा दी। एक व्यक्ति ने पेड़ को काटने पर एतराज उठाया। उसे बंदी बना लिया गया और अंत में उसी के माध्यम से तीन दिन में हत्यारे का पता चल गया। उसे मृत्यु दंड दिया गया।

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