लोगों की राय

नई पुस्तकें >> लेख-आलेख

लेख-आलेख

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781613016374

Like this Hindi book 0

समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख

जब विनोबा को घूंसा पड़ा

विश्वास नहीं होता कि स्वतंत्र भारत में, जमीन तथा संपत्ति पर सबका समान अधिकार मानने वाले, भूदान तथा स्वेच्छापूर्वक स्वामित्व विसर्जन के विशाल लक्ष्य को पूरा करने वाले, छलकपट और राजनीति से दूर सरलता और सादगी की प्रतिमूर्ति विनोबा पर भी कोई क्रूरहृदय घूंसे बरसा सकता है।

भारत के बारह स्वयंभू ज्योतिर्लिंगों में बिहार का वैद्यनाथ धाम भी एक है। बंगाल और बिहार के लोगों के लिए वह एक बड़ा तीर्थ स्थान है। सितम्बर 1953 में विनोबा की अनवरत यात्रा का पड़ाव देवघर में था। वैद्यनाथ का मंदिर हरिजनों के लिए नहीं खुला है यह पता लगते ही विनोबा ने एक आम सभा में कहा, ´´भगवान के भक्तों का जिस मंदिर में प्रवेश नहीं होता वहां की मूर्ति प्राणहीन हो जाती है। जहां मंदिरों में हरिजनों का प्रवेश नहीं, वहां मैं नहीं जाता।´´

यह सुनकर पंडों-पुजारियों में हलचल मच गई। मंदिर के प्रमुख पुजारी विनोबा के पास आकर बोले, ´´हमारा मंदिर हरिजनों के लिए खुला है। आज आप जरूर आइए। हम निमंत्रण देने आए हैं।´´

विनोबा ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया।

सांझ के समय विनोबा मंदिर की ओर चले। वे ध्यानमग्न थे, मन में शिवस्त्रोत का जाप चल रहा था। साथी लोग मौन पीछे चल रहे थे। उनमें से कुछ हरिजन भी थे। मंदिर के द्वार तक पहुंचते-पहुंचते काफी अंधेरा हो चुका था। मंदिर के भीतर प्रवेश करते ही बिजली गुल हो गई। भीड़ बहुत थी। ´´धर्म की जय हो´´, ´´अधर्म का नाश हो´´ जैसे उद्घोष होने लगे। विनोबा ने कुछ नहीं सुना क्योंकि वे ध्यानमग्न थे। जयघोष जोर-जोर से होने लगे। हल्ला-गुल्ला बढ़ गया, गडबड़ी शुरू हो गई।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book