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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
कॉरपोरेट जंगल
किसी जंगल में मदोत्कट नामक एक शेर रहता था। उसने चीता और सियार को प्रबंध सलाहकार के रूप में नियुक्त कर रखा था। कौआ संदेशवाहक था। वे तीनों उसके साथ रहते और शिकार में मदद करते। कम्पनी के सीईओ की तरह शेर का आतंक पूरे जंगल में था पर दिखाने के लिए वह कभी-कभी साथियों के प्रति बहुत संवेदनशीलता प्रदर्शित करता। इस संवेदनशीलता को बढ़ा-चढ़ा कर प्रचारित कर सियार और कौआ उसे गद्गद् किया करते थे।
एक बार राजा के लिए भोजन की खोज में दोनों सलाहकार बाहर निकले। उन्हें वहां घूमता-घामता एक ऊंट दिखाई दिया। ऊंट कुछ सहमा हुआ था। चीते ने बल प्रयोग की बजाए उसकी राजा के दरबार में नियुक्ति करवा कर उसका शोषण करने की सोची। उसने इसी आशय से सियार की ओर देखा। ऊंट को राजा की संवेदनशीलता की बात बताई और उससे पूछा, ´´तुम यहां अपने झुंड से अलग क्यों भटक रहे हो, भैया?´´
ऊंट ने कहा, ´´ मेरा नाम क्रथनक है। मुझे मेरे साथियों ने किसी कारण से झुंड से बाहर निकाल दिया है। अब मैं अकेला हूं और मेरा कोई सहारा नहीं है।´´
सियार ने संकेत दिया और चीते ने हामी भरी। उसने ऊंट से कहा, ´´हमारे राजा बहुत भले हैं। तुम्हें शरण देंगे और मित्र की तरह रखेंगे। चलो उनसे भेंट करवा देते हैं।´´ इस प्रकार ऊंट राजा सिंह की गुफा तक लाया गया।
ऊंट ने पराए देश में इस आग्रह को ईश्वर की कृपा माना और सिंह के दरबार में जा पहुंचा। ऊंट की व्यथा-कथा सुनकर मदोत्कट की संवेदनशीलता जाग उठी। उसने कहा, ´´तुम्हें कोई भय नहीं। मैं तुम्हें अभयदान देता हूं क्योंकि अभयदान को विद्वान गोदान, भूमिदान और अन्नदान से भी बड़ा मानते हैं। यहीं रहो, चाहो तो मेरे साथ पूरा जीवन गुजार सकते हो।´´
हममें से अधिकांश लोग जो करते हैं ऊंट ने वही किया। हमें कोई ठौर न मिले तो चीते और सियार की सलाह भी अमृत वचनों के समान लगती है।
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