लोगों की राय

नई पुस्तकें >> लेख-आलेख

लेख-आलेख

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781613016374

Like this Hindi book 0

समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख


पता करने पर ज्ञात हुआ कि हमारे नगर में एक पक्षी-विशेषज्ञ भी रहते हैं। लिहाजा मैं उनसे मिला और उन्हें अपना उद्देश्य बताया। मेरी कौआ संबंधी जिज्ञासा के बारे में जानकर विशेषज्ञ को बड़ी खुशी हुई क्योंकि जैसा कि उन्होंने बताया तोता, मैना, मोर, कोयल, हंस, कबूतर आदि के बारे में जानकारी लेने के लिए तो लोग यदाकदा उनके पास आते हैं पर कौओं की खोज खबर लेने कोई नहीं आता। विशेषज्ञ महोदय का कौआ-ज्ञान भी कदाचित जंग खा रहा था। अतः मेरी काक-जिज्ञासा से वह उसी तरह उत्साह से भर गए जैसे कक्षा में पूरी उपस्थिति देखकर हिन्दी टीचर भर जाता है।

सबसे पहले तो विशेषज्ञ महोदय ने बताया कि जिस तरह विष्णु के हजार नाम होते हैं उसी तरह कौओं के भी अनेक नाम पाए जाते हैं। बिना कोई किताब पलटे कुछ नामों की बानगी उन्होंने इस तरह दी- ´आत्मघोष, अरिष्ट, एकाक्ष, मोद्गलि, यमदूत, लुठांक, करकट, कारू, काग, कागा, चिरायु, टर्रू, दिवाकर, द्युकारि, काहव, कोको, कौशकारि, परितोषक, धनाक्ष, पिशुन, बलिपुष्टि, वायस, हाड़ी, शिव...।´

ज्यों ही वह सांस लेने थमें मैंने क्रमभंग करते हुए पूछा, ´´यह ´आत्मघोष´ क्या बंगाल में पाया जाने वाला कौआ होता है।´´

विशेषज्ञ मेरी अज्ञानता पर धीमे से हंसे फिर जोर देकर बोले, ´´आत्मघोष का अर्थ है अपने को ही पुकारने वाला...।´´

´´अर्थात´´, मैंने जोड़ा, ´´अंग्रेजी नाटककार शेक्सपियर के पात्रों की तरह स्वगत-कथन करने वाला।´´

नामावली प्रकरण के बाद विशेषज्ञ ने कौओं के संबंध में बड़े अद्भुत और आश्चर्यजनक तथ्य उद्घाटित किए। उनके अनुसार कौए छिछोरे न होकर परिवारनिष्ठ होते हैं यानी प्रचलित भारतीय सामाजिक परंपराओं के अनुसार वे अपना पति-पत्नी का जोड़ा जीवन भर के लिए बनाते हैं। इस तरह कौए हिंदू संस्कारों के काफी नजदीक पड़ते हैं। गनीमत है कि वे राजनीति में नहीं हैं अन्यथा चरित्र के हिन्दुत्व से मेल खाने के कारण गैरदक्षिणपंथियों द्वारा उनके तो पर नोंच डाले गए होते। पक्षी जगत में कौओं का समाज अविकसित और रूढ़ माना जाता है क्योंकि पाश्चात्य देशों की हवा खाए मानव-समाज की तरह वैवाहिक जीवन में तलाक की प्रथा उन्होंने अभी तक नहीं अपनाई है। उनमें भंवरों और तितलियों की-सी रस-लोलुपता की प्रवृत्ति नहीं पायी जाती है। अतः पक्षी समाज में कौए अरसिक और उनकी वाणी कर्कश मानी जाती है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book