नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
गोस्वामी तुलसीदास अंतिम समय तक लंगोट बांधकर व्यायाम करते रहे। उनके आराध्य हनुमान भी तो लंगोटधारी थे। अन्य देवी-देवताओं के वस्त्र-परिधान समयानुसार भले ही परिवर्तित होते रहे हों पर हनुमान जी आज भी लंगोट धारण किए हुए हर चित्र में, प्रत्येक मूर्ति में अवतरित होते हैं। हनुमान के समय में लंगोट एक समाज-स्वीकृत परिधान था। लंका में सीता के सामने भी वे लंगोट धारण किए हुए प्रकट हुए थे। सीता ने उनके पहनावे पर अश्लीलता का कोई प्रश्न नहीं उठाया था। हनुमान को भी अपना लंगोट परिधान अतिप्रिय था, इसका संकेत वाल्मीकि जी ने रामायण में दिया है। पहली बार हनुमान जब राम-लक्ष्मण से मिलने गए थे तब ब्राह्मण वेश में थे अर्थात तद्नुरूप वस्त्र धारण किए हुए थे परंतु ऋष्यमूक पर्वत पर आते ही उन्होंने अपना मूल परिधान यानी लंगोट धारण कर लिया। राम-लक्ष्मण ने भी कोई एतराज़ नहीं किया। आज के श्रद्धालु नर-नारी भी हनुमान जी के ड्रेस कोड पर कोई एतराज़ नहीं करते और लंगोटधारी हनुमान की श्रद्धा-भाव से पूजा करते हैं। अगर वे लंगोट धारण न किए होते तो क्या इतने पूज्य होते!
एक दृष्टि से ´लंगोट´ न तो स्त्रीलिंग है न पुल्लिंग। अधिक से अधिक इसे नपुंसक लिंग माना जा सकता है। इसका पुल्लिंग है ´लंगोटा´। लंगोटे में ब्रह्मचर्य का तेज समाया होता है पर हनुमान की तरह शारीरिक बल और शौर्य नहीं होता। साधु-सन्यासी और बाबा लोग लंगोटा धारण करते है और गांव-नगर से दूर निर्जन जगह में धूनी रमाए साधनारत रहते हैं। 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन में इन लंगोटाधारी साधुओं ने संचार का माध्यम बनकर क्रांतिकारियों की बड़ी सहायता की थी। आजकल तो कुंभ जैसे मेलों में ही इनके सार्वजनिक दर्शन होते हैं।
लंगोट का स्त्रीलिंग है ´लंगोटी´। पूर्व काल में इसे या तो बच्चे बांधते थे या फिर भूत। भूत लंगोटी बांधकर भी डरपोक बने रहते हैं और निडर आदमियों को देखकर अक्सर भाग खड़े होते हैं। भाई लोग भागते भूत की लंगोटी खींचकर संतुष्ट हो लेते हैं। बच्चों में लंगोटी मित्रता की पक्की गांठ लगा देती है जिससे वे हमेशा के लिए लंगोटिया यार हो जाते हैं।
समय के साथ लंगोट का महत्व घटने लगा। कुश्तियां अखाड़े के स्थान पर ´रिंग´ में गद्दों पर होने लगीं। साधू, महात्मा, संत अपनी धूनियां और लंगोट छोड़कर रेशमी वस्त्र धारणकर समाज में उपदेश देने लगे, प्रवचन करने लगे। अब लंगोट सिर्फ मुहावरों में जीवित रह गया है लेकिन अर्थ भी कितने विपरीत हो गए हैं। ´लंगोट बांधने´ का अर्थ अब दरिद्र होना या सांसारिक सुखों का त्याग करना हो गया है। ´लंगोट में मस्त´ वही होता है जो अपनी गरीबी से खुश हो।
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