नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
लंगोट
किसी कंपनी विशेष का कच्छा ´अंदर की बात´ हो सकता है परंतु उसका पुरातन रूप लंगोट नहीं। लंगोट तो सरेआम पहना जाता है। लंगोट कमर पर बांधने का वह (न्यूनतम) वस्त्र विशेष ही नहीं है जिससे उपस्थ और नितम्ब आवृत रहते हैं प्रत्युत इसके अन्य निहितार्थ भी हैं। ये अर्थ धीरे-धीरे आगे खुलेंगे।
पहले पहलवानों की पहचान लंगोट से होती थी। व्यायाम करते समय या अखाड़े में ´जोड़´ (दो पहलवानों के साथ मिलकर अभ्यास की क्रिया) करते वक्त लंगोट उनकी कमर पर कसी होती थी और जब अखाड़े की ओर जा रहे होते तो यह उनके कंधे पर शोभायमान रहती। पहलवानों के सिरमौर दारासिंह ने सभी कुश्तियां लंगोट बांधकर मारीं। लंगोट के बल पर किंगकांग तक को पछाड़ा। सिनेमा के पर्दे पर पहली बार 1955 में लंगोट बांधकर ही ´पहली झलक´ दिखलाई। धीरे-धीरे इतने मशहूर हो गए कि उनके लंगोट को ´ग्लेमर´ ने ढक लिया।
सभी पहलवान लंगोट पर जान निछावर करते थे। उस्ताद सिखाते, ´´बेटा लंगोट के सच्चे रहना,´´ यानी ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना। ´लंगोट का सच्चा´ मुहावरा यहीं से निकला। ऐसा नहीं कि पहलवान लोग शादी नहीं करते, करते थे, परंतु लंगोट उन्हें संयम रखना सिखाता था। इस प्रकार ´लंगोट´ का अर्थ ही संयम हो गया। जिसके पास लंगोट होता वह संयमी माना जाता फिर चाहे वह पहलवान हो या पिद्दी हो।
छत्रपति शिवाजी के एक सेनापति ने कल्याण का एक किला जीता। लूट में अन्य संपत्ति के अतिरिक्त किलेदार की सुन्दर युवा बहू भी मिली। उस सुंदरी को पालकी में बिठाकर शिवाजी की सेवा में प्रस्तुत किया गया। शिवाजी ने पालकी में एक अनिंद्य सुंदरी को देखा तो उनका सिर लज्जा से झुक गया। सुंदरी को अभयदान देने हेतु कहा, ´´काश, हमारी माता भी इतनी सुंदर होतीं तो मैं भी सुंदर होता।´´ सेनापति को फटकार लगाई और उस सुंदरी को ससम्मान उसके परिवार के पास भेज दिया।
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