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लेख-आलेख

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781613016374

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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख


घमंड़ आ जाने या नेता बन जाने का प्रभाव सीधे आदमी के सिर पर पड़ता है जिसके कारण वह सिर सामान्य से अधिक ऊंचा उठाकर चलने लगता है। वैसे तो अंततः रावण की तरह घमंडी का सिर नीचा होता है परंतु किसी ´सामान्य सिर´ के ´समर्थ सिर´ के सामने उठने पर सिर कुचल भी दिया जाता है। जो माता-पिता अपने बच्चों को जरूरत से ज्यादा प्यार देकर सिर पर चढ़ा लेते हैं उन सिर-चढ़े बच्चों के सिर से दुर्भाग्यवश माता-पिता का साया असमय उठ जाने पर उन्हें जिदंगी चलाने के लिए सिर का पसीना पांव तक लाना पड़ता है।

सिर न होता तो, कल्पना कीजिए, अंग्रेज देश-भक्तों को फांसी कैसे देते। फांसी का फंदा डाला जरूर गले में जाता है परंतु फंदे को अपने स्थान पर बनाए रखने और गला घोटने में सिर ही सहायक होता है। शहीद होने के लिए सदा सिर ही काम आता है। आजादी के दीवाने ´सरफरोशी´ के गाने गाते थे। अपने धर्म पर अड़िग रहने वाले गुरु तेग बहादुर के मुख से, गुरु गोविंद सिंह के षब्दों में, ´सीस दिया पर सी न उचरी।´ दिल्ली के चांदनी चौक में जिस जगह पर गुरु का सिर काटा गया था उसे ´शीशगंज´ के नाम से पुकारने लगे। बादशाह बहादुरशाह ´ज़फर´ ने अंग्रेजों द्वारा काटे गए अपने पुत्रों के सिर देखकर भी अपना सिर नहीं झुकाया।

सुना है प्रेम करने के लिए सिर को कटवाना या काटना तक पड़ता है। ऐसे प्रेम का हमें कोई अनुभव नहीं है पर रहीम ने कहा इसलिए मान लेते हैं, रहिमन यह घर प्रेम का खाला का घर नांहि, सीस उतारे भुई धरै तब पैठे यहि मांहि।

आजकल सच्चा प्रेम इसीलिए नहीं दिखाई पड़ता है कि प्रेमी सिर कटाने को तैयार नहीं क्योंकि बिना सिर के प्रेम भले ही मिल जाए नौकरी मिलने से रही।

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