नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
ओलों की चोट से बचाने के लिए प्रकृति ने सिर को बालों के छत्ते से ढ़क दिया है। भाई लोगों ने इन बालों को फैशन की चीज बना लिया। काले बालों से ढ़का सिर शायद सबसे ज्यादा सुरक्षित और सुंदर समझा जाता है इसलिए लोग बाल सफेद होने पर उनमें खिजाब (यानी कलर) लगाकर फिर काला कर लेते हैं। अगर सिर पर बाल न होते तो शैम्पू, कलर, क्रीम और तेल, कंघी, जुंए मारने की दवाई के उद्योग अस्तित्व में कभी न आते और हम टी.वी. पर इनके धुंआधार विज्ञापन देखने से वंचित रह जाते। साथ ही यह संसार नाईंयों के अस्तित्व से भी वंचित रह जाता। हिप्पियों के जमाने में सिर पर उगा बालों का जंगल जुओं की खेती के काम आता था। बाल न होने पर जूं भी विस्थापित हो जाते।
प्राचीन काल में पुरुषों के सिर पर ठीक पीछे अन्य बालों की अपेक्षा लम्बे बालों का एक गुच्छा रखने का फैशन था जिसे चोटी या शिखा कहा जाता था। उस समय संस्कृत के विद्यार्थी छत या किसी कुंडे से बंधी और नीचे लटकी रस्सी से चोटी बांधकर स्वाध्याय किया करते थे। इस क्रिया से उन्हें नींद नहीं आती थी या पाठ जल्दी याद होता था इस विषय में इतिहास मौन है। व्यक्तिगत खुन्नस के कारण राज्य को या राजा को नष्ट कर देने के प्रण के रूप में चोटी में गांठ खोल देने और प्रण पूरा होने पर शिखा की गांठ बांधने की प्राचीन प्रथा पाई जाती है। चाणक्य के बाद राष्ट्रीय स्तर पर चोटी में फिर गांठ नहीं लगाई गई जिससे वह हवा में फहराते-फहराते अब सिर से लुप्त हो चली है।
अब चोटी के अस्तित्व में न होने पर भी उसका संबंध ऐड़ी से जुड़ा अब भी पाया जाता है। ऐड़ी और चोटी अक्सर ´जोर´ लगाने के काम आते हैं। आदमी की चोटी हमेशा अधोमुखी रही है मगर मोर, मुर्गे आदि की चोटी, जिसे ´सिरगिरा´ कहते हैं, सदैव सिर के ऊपर खड़ी रहती है। इसी बात से प्रभावित होकर सिकंदर महान ने भारत के कुछ मोरों को विशेष रूप से पश्चिमी देशों को भेजा था।
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