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लेख-आलेख
लेख-आलेख
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2017 |
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 10544
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आईएसबीएन :9781613016374 |
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
गर्दभराज धरती मां के प्यारे बेटे हैं और वे खुद धरती को इतना प्यार करते हैं कि अपना पूरा शरीर ही धरती पर लोट-पोट कर मां की गोद में निमग्न हो जाते हैं। हमारी बात का विश्वास न हो तो यह पुरानी पहेली सुन लीजिए- ´ब्राह्मण क्यों प्यासा, गधा क्यों उदासा?´ उत्तर है- ´लोटा न था।´ जिस दिन गधा धरती माता के अंक का आलिंगन नहीं कर पाता, उदास रहता है। इसे शास्त्रों में ´भौम स्नान´ कहा जाता है। ऐसा होता है मातृ-भूमि का प्रेम।
सांड, बैल, भैंस, गाय अक्सर एक दूसरे से लड़ते हुए पाए जाते हैं। घोडे़ भी लड़ाई के लिए एक दूसरे का पीछा करते हैं। परंतु गधा विशुद्ध अहिंसावादी जीव है। जब भी दो गधे साथ-साथ खड़े होते हैं उनके मुंह एक दूसरे से विपरीत दिशा में पाए जाएंगे। कारण मात्र यही है कि न आमने-सामने होंगे, न विवाद बढ़ेगा और न लड़ाई होगी। गधे की तरह बकरी भी अहिंसावादी होती है। पर गधे की तुलना में उसमें एक अतिरिक्त गुण यह होता है कि वह मनुष्य के पीने योग्य दूध भी देती है। इसी कारण गांधी जी ने अंहिसा के प्रतीक के रूप में गधे की जगह बकरी पाली थी। गधी के दूध के बारे में विज्ञानियों की राय है कि इसमें गाय के दूध से अधिक मिठास और प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। एक गधी से औसतन चार से छह लीटर तक दूध रोजाना निकाला जा सकता है। ऐतिहासिक सत्य है कि मिस्र की महारानी किल्योपेट्रा अपने सौंदर्य में चार चांद लगाने के लिए गधी के दूध से स्नान किया करती थी। गधी के दूध से बनी क्रीम का प्रयोग वह अपने सुडौल बदन पर करती थी ताकि उसकी त्वचा में झुर्रियां न पड़े और वह लावण्यमयी बनी रहे। उसके महल में गधे-गधी का कितना सम्मान होता होगा इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है।
गधे को मूर्ख कहना मूर्खता होगी। घोड़े और गधे की तुलना में घोड़ा किसी प्रकार गधे से बीस नहीं बैठता। घोड़े की तेज चाल उसकी स्वभावगत विशेषता नहीं है। मुंह में पड़े दहाना और उससे जुड़ी वल्गाओं के कारण घोड़े को दौड़ना पड़ता है। आज तक किसी ने गधे के मुंह से दहाना डालकर, वल्गाएं खींच कर उसे ऐंड़ नहीं लगाई। फिर कैसे कहा जा सकता है गधा सुस्त होता है। घोड़े की तरह गधा कभी नहीं विदकता। गधा योगी जैसा विचारवान होने के कारण प्रायः अपने में ही खोया रहता है। बहुत अधिक सताए जाने पर ही दुलत्ती झाड़ता है। सूखी या हरी जैसी भी घास दो खा लेगा। न भी दो तो सुबह, निन्ने मुंह, काम पर चल देगा। लेकिन जब गधे पर मालिक के अत्याचार सीमा पार कर जाते हैं तो उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है। सूडान में गधे के खान-पान पर कतई ध्यान नहीं दिया जाता परंतु उन पर बोझ ज्यादा लाद देते हैं। बोझ नहीं ढो पाने पर उन्हें हंटर से पीटा जाता है। घायल होने पर आगे चलकर गधों को ´होमाटोमा´ नामक बीमारी हो जाती है जिससे त्रस्त होकर वे नदी में कूदकर आत्महत्या तक कर लेते हैं।
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