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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781613016374

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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख


सेना में प्रतिरक्षा संबंधी कार्यों में कुत्तों, कबूतरों की मदद तो देखी-सुनी जाती रही है, पर यह कदाचित ही सुना गया हो कि इस कार्य में मछलियां भी निष्णात् होती हैं। किन्तु यह सत्य है। इसकी शुरूआत अमेरिका ने की है। प्रयोग के रूप में इस प्रकार के प्रशिक्षण का शुभारंभ सर्वप्रथम कैलिफोर्निया के चाइना लेक स्थित नेवल आर्डिनेन्स सेण्टर में किया गया। वहां बारी-बारी से तीन डॉल्फिनों को प्रशिक्षित किया गया और बाद में खुले समुद्र में छोड़कर उनकी परीक्षा ली गई। यह जानने का प्रयास किया गया कि प्रशिक्षण के दौरान उन्हें जो कुछ सिखाया गया उसे वे सचमुच सीख पाईं या नहीं। परिणाम उत्साहवर्धक देखा गया। इस आरंभिक सफलता के उपरांत यह प्रशिक्षण कार्य अमेरिका में कैलिफोर्निया के अतिरिक्त फ्लोरिडा एवं हवाई के दो अन्य नौसैनिक केन्द्रों में चलाया गया। डॉल्फिनें जल के भीतर छिपी सुरंगों का सही-सही अनुसंधान कर इसकी सूचना जलयान को देतीं हैं और संभाव्य दुर्घटना को टालने में मदद करती हैं। आज अमेरिका के पास इस प्रकार की सैकड़ों प्रशिक्षित मछलियां हैं, जो समय-समय पर जल-सेना को अपनी बहुमूल्य सेवा प्रदान करती रहती हैं।

इस प्रकार डॉल्फिनों की सहकारिता निश्चय ही सराहनीय है। विकासवादियों के अनुसार कशेरुकी मेरुदंड युक्त प्राणियों में मछलियां सबसे निम्न श्रेणी की हैं। उच्चकोटि में स्तनपाइयों को रखा गया है। उनमें भी मनुष्य को सर्वाधिक श्रेष्ठ व बुद्धिमान माना गया है। डॉल्फिन मछली अल्प विकसित प्राणी है। वह मनुष्य की तुलना में अत्यन्त अशक्त-असमर्थ है फिर भी वह अपनी सीमित क्षमता-योग्यता का भरपूर उपयोग करके ´सहकार-वृत्ति´ का उत्कृष्ट नमूना प्रस्तुत करती है। मनुष्य उससे अनेक गुना विकसित और सामर्थ्यवान है, अतः उसकी परोपकारिता भी अनेक गुनी बढ़ी-चढ़ी होनी चाहिए।

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