नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
चींटी चरितावली
बचपन में आल्हा की एक पैरोडी सुनी थी, ´´बांध मुरैठा चींटा निकरो, चींटी ले निकरी तलवार।´´ इस पंक्ति को सुनकर मेरे बाल-मन पर यह भ्रम बैठ गया कि चींटा और चींटी पति-पत्नी होते हैं तभी दोनों युद्ध में साथ-साथ निकल पड़ते हैं। बाद में पता चला कि ये दोनों भिन्न प्रजाति के प्राणी हैं। और भी बाद में ज्ञात हुआ कि चींटी समुदाय में नर चींटी (जिसे चींटा कदापि नहीं कहा जा सकता) की भूमिका बड़ी सीमित और जीवन बड़ा दुखदायी होता है। युवा नर और मादा चीटियां, परिवार की सहमति से और उनकी पूर्ण जानकारी में घर से बाहर जाकर ´मिलती´ हैं। एक बार ´मिल´ लेने के बाद अधिकांश नर चींटियां अपने प्राणों से हाथ धो बैठती हैं। इसी कारण जननक्षम नर की संख्या चींटी समुदाय में काफी कम होती है। परंतु प्रकृति ने ऐसा प्रबंध कर रखा है कि नर चींटी की अकाल मृत्यु के बाद जनसंख्या में कोई असंतुलन न आवे। अतः एक बार के ´मिलन´ के बाद चींटियां इतने शुक्राणु सुरक्षित कर लेती हैं जो जीवनभर उनके प्रजनन के लिए पर्याप्त होते हैं। वर्षा की पहली फुहार के साथ ही प्रजनन प्रारंभ हो जाता है।
चिटियां हमेशा से ही दार्शनिक, लेखकों और प्रकृतिविदों के लिए कौतूहल का विषय रही हैं। पिछले कुछ दशकों में वैज्ञानिकों ने चीटिंयों के बारे में जानकारी हासिल की कोशिश की कि वे कैसे जीवित रहती हैं, किस तरह संचार स्थापित करती हैं। कैसे हजारों, कभी-कभी लाखों चीटियां मिलकर किसी केन्द्रीय नेतृत्व के बिना सामूहिक फैसला लेती हैं।
यह पाया गया है कि कामगार चीटियां अपने शरीर का इस्तेमाल जमीन की सबसे निचली सतह के गड्डों को भरने के लिए करती हैं जिससे बुजुर्ग चीटियां एक कालोनी से दूसरे घरौंदे तक आराम से जा सकें। विभिन्न चीटियां विभिन्न आकारों के छिद्र भरती हैं और अगर छिद्र बड़ा है तो दो चीटियां आपस में जुड़ जाती हैं। चीटियों का यह व्यवहार ´फर्मीओन´ रसायन द्वारा व्यवस्थित होता है। लगभग दो दर्जन विभिन्न रसायन चीटियों के व्यवहार को निर्धारित करते हैं। यह उनको इस बात की सूचना देते हैं कि कैसे वह घरौंदे में भोजन खोजने जाएं, किस चींटी को भोजन की जरूरत है, कौन सैनिक है, कौन रानी है। अगर ´फर्मिओन´ को चीटियों से अलग कर लिया जाए तो चीटियां भ्रमित हो जाएंगी। इसी रसायन के आधार पर वे महत्वपूर्ण सामूहिक फैसले करती हैं। रसायन का इस्तेमाल करने के अलावा चींटियां एक दूसरे से संपर्क साधने के लिए गुनगुनाती हैं, साथ ही अपने शरीर के हिस्सों को रगड़कर आवाज उत्पन्न करती हैं। कुल मिलाकर, चींटियों के मस्तिष्क की मानव-मस्तिस्क से काफी समानता है।
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