नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
पौराणिक प्रसंग है कि एक बार भगवान शंकर पार्वती को मुंडमाला की रहस्य-कथा सुना रहे थे। पास ही पेड़ पर बैठा तोता भी चुपके से यह वर्जित रहस्य-कथा सुन रहा था। कथा सुनते-सुनते पार्वती सो गईं तो कथा-क्रम को जारी रखने के लिए उनके स्थान पर तोता ´हुंकारी´ भरने लगा । अचानक शिव जी को पार्वती के सो जाने का पता चला । उन्होंने देखा पेड़ पर बैठा तोता कथा सुन रहा है और हुंकारी भर रहा है। एक तो अनधिकृत श्रोता, दूसरे उनके शत्रु कामदेव का वाहन। शिव ने त्रिशूल फेंका- तोता सावधान था, उड़कर भागा और सूक्ष्म रूप धारण कर घृताची के गर्भ में प्रवेश कर गया और प्राण बचा लिए। घृताची एक अप्सरा थी जो शुकी के रूप में पृथ्वी पर भ्रमण करती थी। उस समय वेद व्यास के पुत्र की मां बनने वाली थी। बाद में जो पुत्र हुआ वह शुकदेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने श्रीमद्भागवत् की रचना की जिसे ´शुकशास्त्र´ भी कहा जाता है।
सातवीं शताब्दी के प्रख्यात संस्कृत गद्यकार बाणभट्ट ने अपनी कृति ´कादम्बरी कथा´ में तोते को प्रमुख पात्र बनाया है। व्याघ्रदेव ने विदिशा के राजा शूद्रक के समक्ष तोते को प्रस्तुत करते हुए उसका परिचय दिया, ´´महाराज, यह अद्भुत तोता है। इसका नाम वैशंपायन है। इसे सारे शास्त्र कंठस्थ हैं। राजनीति इसने घोटकर पी रखी है। पुराण, इतिहास, कथाएं सब ऐसे सुनाता है जैसे साक्षात व्यासपुत्र शुकदेव अवतरित हुए हों। पता नहीं कितने काव्य, नाटक, आख्यान आदि इसने रटे हुए हैं। संगीत, चित्रकला, नाट्य आदि सब कलाओं का यह मर्मज्ञ है।´´ ´कादम्बरी´ की पूरा कथा तोता ही कहता है।
मलिक मोहम्मद जायसी के ´पदमावत्´ (1540) में हीरामन नामक तोता सिंहल की राजकुमारी पद्मावती का अंतरंग मित्र है। प्राप्त-यौवना राजकुमारी अपने अनदेखे-अनचीन्हें प्रेमी के लिए अधीर हो उठती है। वह हीरामन से सहायता मांगती है। उसकी दशा से द्रवित हो हीरामन राजकुमारी के लिए उपयुक्त वर की तलाश में भटकते हुए चित्तौड़ के राजा रतनसेन के पास पहुंचता है। हीरामन राजा के सम्मुख पद्मावती के रूप-गुण-सौंदर्य का वर्णन करता है जिसे सुनकर वह राजकुमारी के प्रेम में पड़ जाता है। तोते के मार्गदर्शन में रतनसेन सिंहल पहुंचकर पद्मावती को प्राप्त कर लेता है।
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