नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
वैसे तो छोटे-मोटे खेल तमाशे हम करते ही रहते हैं, पर सरकसों और फिल्मों में तरह-तरह के करतब भी दिखाते हैं। हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है जासूसी करना। यहां भी हमारी घ्राणशक्ति की प्रबल भूमिका होती है। बस अपराधी की किसी वस्तु या उसके स्पर्श को सूंघते ही हम निकल पड़ते हैं और वह पट्ठा भले ही सात-तालों के पीछे छिपा हो हम जाकर उसे दबोच लेते हैं। हां, अगर अपराधी किसी वाहन से भागा हो या नदी-तालाब के पानी से गुजर गया हो, तो हम विवश हो जाते हैं। हम जमीन में छिपे विस्फोटकों की पहचान ही नहीं कर लेते वरन् आजकल आतंकवादियों की भी ख़बर लेने लगे हैं। भारत सरकार ने इस कार्य के लिए हमारी विशेष टोलियां बनाई हैं। भई, हमें तो फक्र है कि हम देश के काम आ रहे हैं।
मालिक का दुश्मन हमारा दुश्मन होता है फिर चाहे वह निरपराध ही क्यों न हो। श्री धर्मानंद कोसम्बी ने लिखा है कि आर्य भारत में बाहर से आए थे जिनका सेनापति इंद्र था। उसके पास शिकारी कुत्ते थे जिनसे उसने सप्तसिंधु के यतियों का वध कराया था क्योंकि उनका समाज पर बहुत प्रभाव था। कुछ लोगों ने शंका प्रकट की है कि यतियों का वध कुत्तों ने नहीं भेड़ियों ने किया था। काश भेड़ियों ने ही किया होता! इसी संदर्भ में वधिक के रूप में ऋग्वेद में ´सालावृक´ शब्द का प्रयोग किया गया है जिसके दो अर्थ होते हैं- भेड़िया और कुत्ता। कुत्ता इस प्रसंग में इसलिए समीचीन है कि एक तो वे इंद्र के पास थे दूसरे भेड़ियों को पालतू नहीं बनाया जा सकता। इस घटना को श्वान-इतिहास में कलंक माना जाता है।
मानव की व्यक्तिगत सेवा के साथ हमारी सेवाएं सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में सराही गई हैं। अंतरिक्ष में भेजने के लिए रूस ने जब अंतरिक्षयान (स्पुतनिक) बनाया, तो किसी इंसान की हिम्मत नहीं हुई कि प्राणों की बाजी लगाकर वह अंतरिक्ष में जाए। अंत में हमीं लोगों ने अपनी एक सदस्या ´लाइका´ की सेवाएं दीं। लाइका सफलतापूर्वक अंतरिक्ष की सैर कर सकुशल वापस आ गई और श्वान-जाति की गौरव बन गई।
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