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सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :207
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10544
आईएसबीएन :9781613016374

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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख

अनूठे रहीम

अब्दुर्ररहीम खानखाना के समकालीन और अकबर के दरबारी बीरबल की हाजिरजवाबी प्रसिद्ध है परंतु उनकी हाजिरजवाबी या प्रतियुत्पन्नमतित्व का कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। अकबर-बीरबल के हजारों चुटकुले, व्यंग्य और प्रहसन प्रचलित हैं और आज पुस्तकों के रूप में उपलब्ध हैं। इसके साथ ही यह भी सर्वविदित है कि यह पूरी सामग्री मनगढ़ंत है, काल्पनिक है। रहीम अपने समय में ही साहित्यिक विभूति के रूप में प्रसिद्ध हो गए थे। उनका साहित्य तो उपलब्ध है ही उनकी जीवन शैली के संबंध में रोचक सामग्री भी विभिन्न ग्रंथों में बिखरी मिलती है।

विनम्र दानी

अकबर के दरबारी कवियों में महाकवि गंग प्रमुख थे। रहीम के तो वे विशेष प्रिय कवि थे। गंग ने अपने अंतर्मन से निःसृत हुई रहीम के प्रति अपनी प्रशंसा को व्यक्त करते हुए यह छंद सुनाया जिसमें उनका योद्धा-रूप वर्णित था -

चकित भवंर रहि गयो गमन नहिं करत कमल वन।
अहि फनि-मनि नहिं लेत तेज नहिं बहत पवन घन।।

हंस सरोवर तज्यो, चक्क चक़्की न मिले अति।
बहु सुंदर पद्मिनी, पुरुष न चहें न करें रति।।

खल भलित सेस कवि ´गंग´ भनि अमित तेज रवि रथ खस्यो।
खानखान बैरमसुवन जि दिन कोप करि तंग कस्यो।।

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