नई पुस्तकें >> लेख-आलेख लेख-आलेखसुधीर निगम
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समसामयिक विषयों पर सुधीर निगम के लेख
सद्-बुद्धि
घर की सफाई करते हुए गृहिणी को दो पांडुलिपियां मिलीं। पति लेखक थे तो स्वाभाविक ही था कि घर में यत्र-तत्र ऐसी चीजें मिलें। गृहिणी विवेकसंपन्न थीं। उन्होंने सरसरी दृष्टि से उन पांडुलिपियों को पढ़ा तो लज्जा और क्रोध से वे भर उठीं। साहित्य के नाम पर यह प्रवंचना उनके ही घर से निकलकर पूरे समाज में फैल रही है।
कामशास्त्र पर आधृत उन पांडुलिपियों को उनके पति ने बड़े परिश्रम से तैयार किया है, यह वह जानती थीं। इसके पूर्व उनकी एक पुस्तक ´सुहागरात´ प्रकाशित हो चुकी थी, जिसकी खूब बिक्री हुई थी और पति को पर्याप्त धन भी मिला था। धन और सस्ती लोकप्रियता ने उन्हें ऐसी ही पुस्तकें लिखने को प्रेरित किया था जिसका परिणाम वे दो पांडुलिपियां थीं। उन्हें लगा कि जन-मानस में कुत्सित भाव जगाने वाले साहित्य से जो सस्ती लोकप्रियता और धन मिलता है उस पर धिक्कार है। ऐसे साहित्यकार से तो गंवार होना अच्छा है।
उस विवेकशील नारी को साहित्यकार के रूप में पति की उत्तरदायित्वहीनता एकदम असहनीय लगी। उनकी दृष्टि से साहित्यकार की प्रतिभा ईश्वरीय विभूति होती है। उसका पावन ध्येय होता है जन-मानस को श्रेय पथ पर अग्रसित करना। इस सिद्धांत का उल्लंघन किसी भी साहित्यकार के लिए उचित नहीं। अतः उन्होंने निश्चय किया कि अपने पति को व्यामोह से निकालकर सच्चे मार्ग पर लाएंगी।
शाम को पति घर आए। दोनों पांडुलिपियां ढूंढने लगे। पत्नी ने कहा, ´´आप व्यर्थ परेशान न हों, आपकी दोनों पांडुलिपियां मेरे पास हैं।... लेकिन आपको कभी मिलेंगी नहीं।´´
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