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जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप

कवि प्रदीप

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :52
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10543
आईएसबीएन :9781613016312

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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।


बाद में प्रदीप ने बताया, ‘‘(पत्र देखकर) मेरी तो आंखें फटी रह गईं क्योंकि हम तो साठ-पैंसठ रुपए की अध्यापकी की कल्पना कर रहे थे।’’ चार पांच वर्ष बाद बाम्बे टाकीज़ की नौकरी में आए युसुफ खान उर्फ दिलीप कुमार को भी ऐसा ही आश्चर्य हुआ था जब देविकारानी ने उनकी मासिक तनख्वाह 1250 रु. बताई। उनके भाई अयूब खान ने उन्हें समझाया था, ‘‘देख, यह सालाना का हिसाब है। 1250 रुपए सलाना।... जानता है, राजकपूर को 170 रु. महीने के मिलते हैं।’’ आचार्य प्रदीप को बाहर ले गए। उन्हें एक लिफाफा पकड़ाते हुए कहा, ‘‘इसमें दो सौ रुपए हैं। बॉस ने कहा कि अग्रिम वेतन दे दो। शायद इस लड़के के पास पैसे न हों, कहाँ मांगता फिरेगा! कहा है, कल से काम पर आ जाए।’’ घटनाओं की अप्रत्याशितता के कारण, प्रदीप बताते हैं कि डर के मारे वे कांपने लगे। अभी एक आश्चर्य उनकी और प्रतीक्षा कर रहा था। आचार्य प्रदीप को अपने घर ले गए और उन्हें रहने के लिए एक कमरा दे दिया। आचार्य के कोई संतान नहीं थी। वे प्रथम भेंट से ही प्रदीप को पुत्रवत् प्यार करने लगे थे।

स्वामी नित्यानंद की वाणी सिद्ध हुई। अभी दो महीने नहीं बीते थे। 6 अगस्त 1939 के दिन से प्रदीप ने गीतकार के रूप में सजग और सन्नद्ध होकर अपना काम शुरू किया जो उनकी सहजवृत्ति के अनुकूल था। जाने माने फिल्म समीक्षक और पत्रकार विनोद तिवारी लिखते है, ‘‘उसी वक्त उन्हें एक सिचुएशन बताई गई जिस पर प्रदीप को अगले एक दो दिन के भीतर गीत लिखना था। मगर प्रतिभा के धनी प्रदीप को दो दिन की जरूरत कहाँ थी। उन्होंने  आधे घंटे में यह गीत लिखकर दे दिया-

हवा तुम धीरे बहो, मेरे आते होंगे चितचोर।

(छोटी सी मेरी दिल की तलैया।
डगमग डोले प्रीत की नैया।
ओ पुरवैया दया करो मेरे हिया में उठती हिलोर।)

इस गीत में कवि ने उक्ति वैचित्र्य का सफल प्रयोग किया। पहले ही गीत ने हिमांशु राय को आश्वस्त कर दिया कि प्रदीप की नियुक्ति का निर्णय सर्वथा सार्थक है।’’

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