जीवनी/आत्मकथा >> कवि प्रदीप कवि प्रदीपसुधीर निगम
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राष्ट्रीय चेतना और देशभक्तिपरक गीतों के सर्वश्रेष्ठ रचयिता पं. प्रदीप की संक्षिप्त जीवनी- शब्द संख्या 12 हजार।
इलाहाबाद के साहित्यिक वातावरण में प्रदीप की अंतश्चेतना में दबे काव्यांकुरों को फूटने का पर्याप्त अवसर मिला। यहाँ उन्हें हिंदी के अनेक साहित्य शिल्पियों का स्नेहिल सान्निध्य मिला। वे गोष्ठियों मं कविता पाठ करने लगे। इलाहाबाद में एक बार हिंदी दैनिक ‘अर्जुन’ के संपादक और स्वामी श्रद्धानंद के सुपुत्र पं. विद्यावाचस्पति के सम्मान में एक कवि-गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन कर रहे थे। महादेवी वर्मा, भगवती चरण वर्मा, प्रफुल्ल चंद्र ओझा ‘मुक्त’, हरिवंश राय बच्चन, नरेन्द्र शर्मा, बालकृष्ण राव, रमाशंकर शुक्ल ‘रसाल’, पद्मकांत मालवीय जैसे दिग्गज रचनाकारों ने अपने काव्य पाठ से गोष्ठी को आलोकित किया। इसी गोष्ठी में 20 वर्षीय तरुण ‘प्रदीप' ने अपने सुरीले काव्य-पाठ से सभी को मुग्ध कर दिया। उस दिन काव्य जगत में एक नया सितारा चमका।
नेहरू जी की एक पुस्तक के अनुवाद के सिलसिले में प्रदीप के अग्रज लखनऊ आए और यहीं टिक गए। प्रदीप उनके साथ ही थे। यहाँ उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में बी.ए. में प्रवेश ले लिया। पढ़ाई के अलावा प्रदीप लगातार कविताएं लिखते रहे और कवि सम्मेलनों में जाते रहे। इन्हीं दिनों कवि सम्मेलनों में पढ़ी गई एक कविता ‘पानीपत’ से उन्हें बड़ा यश और मान मिला। प्रदीप ने 300 पंक्तियों की ‘ऋषि गाथा’ शीर्षक से स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन पर एक लम्बी कविता लिखी-
हम आज एक ऋषिराज की पावन कथा सुनाते हैं।
आनंद-कंद ऋषि दयानंद की गाथा गाते हैं।।
उनकी कविताओं में दार्शनिकता भी उभरने लगी। यथा-
कभी कभी खुद से बात करो,
कभी कभी खुद से बोलो।
अपनी नज़र में तुम क्या हो-
ये मन की तराजू पर तौलो।
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