जीवनी/आत्मकथा >> हेरादोतस हेरादोतससुधीर निगम
|
0 |
पढ़िए, पश्चिम के विलक्षण इतिहासकार की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 8 हजार...
हेरादोतस स्वयं बताता है कि हलीकारनासोस यद्यपि एक पारसीक नगर था लेकिन पारसीक पडोसियों से अशोभनीय झगड़े के कारण (I. 144) इसने उनसे अपने घनिष्ठ संबंध समाप्त कर लिए और यूनान और मिस्र के बीच व्यापार शुरू करने की पहल की (II. 178)। अतः हलीकारनासोस पारसीक साम्राज्य के भीतर अंतरराष्ट्रीय रुझान का प्रगतिशील बंदरगाह बन गया। इस तरह हेरादोतस के परिवारीजन पारसीक शासन के अधीन अन्य देशों से अच्छे संबंध स्थापित कर सके जिससे हेरादोतस को विदेश यात्राएं और ऐतिहासिक शोध करने में सहायता मिली। उसके प्रत्यक्षदर्शी विवरणों से संकेत मिलता है कि उसने कुछ ऐथेंसवासियों को साथ लेकर 460-454 ई.पू. के आसपास मिस्र की यात्रा की थी। इसके बाद उसने संभवतः तीरोस की और फरात नदी से बेबीलोन तक की यात्राएं कीं।
कुछ कारणों से, संभवतः स्थानीय राजनीति से जुड़ने के कारण हलीकारनासोस में 447 ई.पू. के लगभग वह अलोकप्रिय हो गया अतः वह एथेंस चला गया। अपनी महानता के उच्चतम शिखर पर स्थापित और संसार के सुसंस्कृत केन्द्र एथेंस में उस समय पेरीक्लीज का शासन था और जिसकी गलियों में 22 वर्षीय सुकरात अपने दर्शन की नींव डाल रहा था। एथेंस नगर, वहाँ के नागरिकों और जनतांत्रिक संस्थाओं की हेरादोतस खुलकर प्रशंसा करता है (V. 78)। वहाँ प्रमुख नागरिकों से उसका संपर्क हुआ जिनमें से वह अल्कमीओनिड और उसके वंष का बार-बार जिक्र करता है। महान नाटककार और कवि सोफोक्लीज उसके मित्र हो गए और उसने उसके लिए एक लम्बी कविता लिखी। एथेंस के शासक पेरीक्लीज से भी उसका परिचय हो गया। एथेंस की भौगोलिकता का उसने ज्ञान प्राप्त किया (VI. 137, VII. 52.5)।
|