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जीवनी/आत्मकथा >> हेरादोतस

हेरादोतस

सुधीर निगम

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :39
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10542
आईएसबीएन :9781613016305

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पढ़िए, पश्चिम के विलक्षण इतिहासकार की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 8 हजार...


ए.एच.एल. हीरेन ने अपने संपूर्ण लेखन में हेरादोतस का उल्लेख किया है और (नील नदी के स्रोत, मेरोई की भूस्थिति आदि से संबंधित) कई अनुच्छेदों की संपुष्टि की है। ऑबिन अपने लेखन में हेरादोतस के विवरणों को प्रयुक्त करता है और उसकी स्थिति का बचाव करते हुए कहा है, ‘‘(हेरादोतस) संसार में वर्णनात्मक इतिहास का प्रथम महत्वपूर्ण लेखक था।’’

डियोप कई उदाहरण (जैसे नील की बाढ़) देते हुए अपने विचारों की पुष्टि में कहता है कि, ‘‘(हेरादोतस) बिल्कुल सत्यनिष्ठ, वस्तुनिष्ठ और अपने समय में वैज्ञानिक इतिहासकार था। ‘उसे क्या बताया गया’ और ‘उसने क्या देखा’ इन दोनों में सावधानी से अंतर करता है।’’

19वीं शताब्दी के बाद की खोजों ने हेरादोतस की विश्वसनीयता में वृद्धि की है। हेरादोतस साइथिया स्थित जेलोनस का विवरण देते हुए उसे ट्राय से हजारों गुना बड़ा बताता है। जब तक यह नगर 1975 में खोज नहीं लिया गया लोग उसकी बात पर अविश्वास करते रहे। समुद्र में डूबे हुए प्राचीन मिस्र के नगर हेराक्लिअन की पुरातात्विक खोज से हेरादोतस की विश्वसनीयता और बढ़ गई है। हेरादोतस ने बिना कोई प्रमाण प्रस्तुत किए दावा किया था कि हेराक्लिअन नगर मिस्र के नए साम्राज्य द्वारा स्थापित किया गया था।

भारत और पाकिस्तान की यात्रा करने के बाद फ्रांसीसी मानवविज्ञानी माइकल पिस्सेल ने एक ऐसे जानवर की खोज का दावा किया है जिससे इस्तोरिया के कुछ अद्भुत अनुच्छेदों पर प्रकाश पड़ता है। (III, 102-105 में) हेरादोतस बताता है कि पारसीक साम्राज्य के भारतीय प्रांतों के सुदूर पूर्वीय हिस्से में लोमड़ी की कद-काठी जैसी भीमकाय ‘चींटियां’ पाई जाती हैं। यह भू-भाग बालुई रेगिस्तान है और वहाँ की बालू में महीन स्वर्ण-कणों का खजाना है। वे उन्मादी चींटिया जब अपने बिल खोदती हैं तो स्वर्ण-धूलि को बाहर निकाल देती हैं जिसे क्षेत्र के निवासी एकत्र कर लेते हैं। पारसीक सम्राट दारयवहु (529-485 ई.पू.) का विशाल साम्राज्य सिंध तक फैला था। यहां से उसे कर के रूप में स्वर्ण-धूलि मिलती थी जिससे निकाले गए सोने की कीमत उसके विस्तृत राज्य की आय का आधा भाग ठहरती थी। पीस्सेल बताता है कि गिलगिट-बाल्टिस्तान प्रदेश में दियोसई पठार पर उत्तरी पाकिस्तान के जन-षून्य क्षेत्र में हिम-मूष की प्रजाति पाई जाती है। यही वह जीव है जिसे हेरादोतस ने भीमकाय चींटी कहा। पिस्सेल ने दियोसई पठार में रहने वाली वन्य जाति मिनारों का साक्षात्कार किया तो उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि उनकी पीढ़ियां हिम-मूष द्वारा निकाली गई स्वर्ण-धूलि का संग्रह करती आई हैं।

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