जीवनी/आत्मकथा >> हेरादोतस हेरादोतससुधीर निगम
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पढ़िए, पश्चिम के विलक्षण इतिहासकार की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 8 हजार...
इन उदाहरणों से यह विदित होता है कि हेरादोतस ने अपने पूरे लेखन में कवियों की रचनाओं जैसा मधु विखेरा है। इससे प्रतीत होता है कि उसने अपने समय के तमाम यूनानी साहित्य का अनुशीलन किया होगा। उनके प्रत्येक कथन से यह सिद्ध होता है कि वे एक ऐसे सुपठित विद्वान व्यक्ति थे जिसने परियों की कहानियां तक लिखने में अपनी प्रज्ञा का प्रयोग किया। परंतु कुछ आलोचक इस टिप्पणी से सहमत नहीं है। उनका कहना है कि वह जितना तार्किक था उतना ही आशु-विश्वासी भी; जितना ज्ञानी था उतना ही मूर्ख भी। वह विश्वास करता था कि स्पार्टा ने युद्ध में इसलिए सफलता पाई कि औरैस्तेस (सोफोक्लीज के नाटक ‘इलैक्त्रा’ का एक दुष्ट पात्र) की अस्थियां उसके पास थीं। इज़राइल के राजा नेबूषद्रनेज्जर को वह एक स्त्री और स्विट्जरलैंड व पडोसी देशों में फैली पर्वत माला आल्पस को एक नदी समझता था। भारत के विषय में उसका ज्ञान सिंधु के इलाके तक ही सीमित था। उसके अनुसार सिंधु का इलाका विश्व की पूर्वी सीमा है और उसके आगे समुद्र है। (यही धारणा लेकर सिकंदर महान भारत आया था।) आलोचकों के अनुसार, उसने तथ्यों की छान-बीन किए बिना मात्र सुनी हुई घटनाओं का संकलन किया। एक स्थल पर वह कहता है कि ‘‘यह मेरा कर्तव्य है कि जो भी सूचनाएं मुझे दी जाती है मैं उन्हें आपके समक्ष प्रस्तुत करूं, उन पर विश्वास किया जाता है या नहीं इससे मुझे कुछ लेना-देना नहीं।’’ अपने ग्रंथ को दिलचस्प बनाने के लिए वह अनेक महत्वहीन चीजों का वर्णन करने को प्राथमिकता देता है; यथा- मिस्र में बिल्लियां आग में कैसे कूदती थीं। (उल्लेखनीय है कि मिस्र में बिल्लियों को अति पवित्र माना जाता था) डेन्यूबियन सुगंध से किस प्रकार उन्मत्त हो जाते थे, बेबीलोन की दीवार कैसे बनी थी? मिस्र के बारे में लिखने से पूर्व वह कहता है, ‘‘अब मैं उत्तरी मिस्र को जा रहा हूं। वहाँ का हाल सुनी-सुनाई बातों पर और मेरे अवलोकन पर आधारित होगा।’’
हेरादोतस को ‘इतिहास का जनक’ बताने वाला सिसरो कहता है, ‘‘इतिहासकार के लिए पहला नियम है कि वह कभी झूठ कहने की हिम्मत न करे और दूसरा नियम है कि जो सच है वह किसी भी कीमत पर कह दे।’’ यह सही है कि इतिहास में सही-झूठ का निर्णय बड़ा जटिल होता है और सत्य एक सीमा तक सापेक्ष ही कहा जा सकता है, पर सिसरो का कथन इतिहासकार की चेतना, उसके उत्तरदायित्व और उसके नैतिक साहस की ओर इशारा करता है। इसलिए उसकी बात कभी पुरानी नहीं होगी।
उपर्युक्त विवरण से ये तथ्य उभरकर सामने आते है कि हेरादोतस गाथाओं और मिथकों से पूरी तरह मुक्त नहीं हो सका; सूचनाओं पर उसने यथावत विश्वास कर लिया; कोई वैज्ञानिक शोध-पद्धति ईजाद नहीं कर सका, जिनके विषय में लिखा उनकी भाषा का ज्ञान नहीं था। इन कारणों से वह उस काल की स्वाभाविक मासूमियत का शिकार हो गया। इतने पर भी उसने अपने इतिहास में मनुष्य के कार्यों को देशकाल में स्थित करना शुरू किया जिससे इतिहास-लेखन का आरंभिक दौर शुरू हुआ। देशकाल का यही संदर्भ इतिहास-लेखन की पूर्वशर्त है।
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