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पढ़िए, पश्चिम के विलक्षण इतिहासकार की संक्षिप्त जीवन-गाथा- शब्द संख्या 8 हजार...
ग्रंथ के दूसरे भाग में हेरादोतस 499 ई.पू. के आयोनियन विद्रोह से लेकर 479 ई.पू. में जरक्सीज के यूनान-आक्रमण तक पारसीक-यूनान संघर्ष का विवरण देता है। उसने इन युद्धों के मूल की खोज की।
हेरोडेटस ने अपने इतिहास ग्रंथ में होमर की परंपरा को अपनाकर सरल, सुग्राह्य और रोचक वर्णन को प्राथमिकता दी है। उसके बारे में माना जाता है कि उसने क्रमबद्धता से सामग्री एकत्र की, उसका विष्लेषण किया और उसे ऐतिहासिक वर्णन का रूप दिया। जैसे होमर प्रथम और महान कवि था वैसे ही गद्य लेखकों में हेरादोतस भी प्रथम था। उसके कार्य ने एक मानक स्थापित किया और परवर्ती पीढ़ियों को प्रेरणा दी। उसका लेखन इतिहास की देवी क्लिओ का प्रथम उद्गार था। हेरादोतस के इतिहास-लेखन ने शून्य से उठकर जिन ऊंचाइयों को छुआ है वह आश्चर्यजनक है। कदाचित इसी कारण सिसरो ने उसे ‘इतिहास का पिता’ कहा है। वह इसी विशेषण से प्रसिद्ध हो गया।
अपनी पुस्तक इस्तोरिया में इतिहास-लेखन का अपना उद्देश्य स्पष्ट करते हुए हेरादोतस कहता है कि वह यूनान और बर्बर जातियों (यानी ईरानियों, जिन्हें अरस्तू ने भी बर्बर कहा) की आश्चर्यजनक उपलब्धियों की पूर्व स्मृति को कागज पर उतार कर सुरक्षित रखना चाहता है। उसी के शब्दों में, ‘‘हलिकारनासोस के हेरादोतस ने यहां अपने शोधों को इस उद्देश्य से प्रदर्शित किया है कि समय व्यतीत होने के साथ यूनानियों और बर्बरों द्वारा प्रदर्शित महान कार्य, विषेषकर जब वे एक दूसरे से युद्धरत हुए, प्रचलन के अभाव में विस्मृत न हो जाएं।’’ दूसरों की उपलब्धियों का लेखा-जोखा भी वास्तव में एक उपलब्धि ही था, हालांकि इसकी सीमाओं पर बहस होती रही है। इतिहास में उसके स्थान और महत्व को तत्कालीन परम्पराओं के, जिनसे बंधकर उसने काम किया, परिप्रेक्ष्य में ही आंकना चाहिए।
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