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आत्मा और उसकी दशाएं
अरस्तू ने आत्मा को शरीर की वास्तविकता, शरीर का निमित्त कारण, अंतिम कारण, शरीर की गति का स्रोत बताया है। आत्मा के विभाग शरीर से स्वतंत्र होकर कुछ नहीं कर सकते। आत्मा के तीन मुख्य तत्व होते हैं, यथा- संवेद, बुद्धि और इच्छा। कर्म का मूल इच्छा में रहता है किंतु कर्म तभी नैतिक या शुभ हो सकता है जब इसका चुनाव बुद्धि से अनुशासित इच्छा द्वारा किया गया हो। इस प्रकार नैतिक कर्म में इच्छा और बुद्धि का समन्वय हो जाता है। इस हेतु आत्मा की दशाओं का अध्ययन अपेक्षित है। आत्मा की पांच दशाएं बताई गई हैं :
1. कला : कला वह बौद्धिक दशा है जिसमें मनुष्य में उन वस्तुओं के निर्माण करने की क्षमता उत्पन्न होती है जिसका होना या न होना उसके संकल्प पर निर्भर करता है। कला का विषय नित्य वस्तुओं का निर्माण नहीं कर सकता।
2. विज्ञान : वैज्ञानिक अध्ययन की वस्तुएं अनिवार्य रूप से स्थिर रहती हैं, इसलिए विज्ञान की शिक्षा दी जा सकती है। किंतु शिक्षा ज्ञात से अज्ञात की ओर प्रवृत्त होती है। आगमन या सहज ज्ञान को वैज्ञानिक शिक्षा का माध्यम नहीं माना जा सकता क्योंकि आगमन से केवल अध्ययन के निमित्त प्राथमिक सत्य प्राप्त होते हैं। निगमन या न्याय पद्धति पूरे विज्ञान का स्थानापन्न बनकर विज्ञान की परिभाषा करते हुए उसे बौद्धिक दशा बतलाता है जिसमें वस्तुओं की व्याख्या की जाती है।
3. व्यावहारिक ज्ञान : व्यावहारिक ज्ञान को स्पष्ट करने के लिए अरस्तू व्यवहार कुशल व्यक्ति की परिभाषाएं बताता हुआ कहता है कि उसी व्यक्ति को व्यवहारकुशल माना जा सकता है जो किसी विशिष्ट प्रसंग में नहीं बल्कि सामान्यता पूरे जीवन के प्रसंग में शुभ अथवा उपयोगी वस्तुओं का ज्ञान रखता है। वह अपने ही शुभों का नहीं बल्कि सबके शुभों का ज्ञान रखता है। इस प्रकार वह यह निर्णय करता है कि व्यावहारिक ज्ञान वह बौद्धिक दशा है जिससे मानवीय गुणों का ज्ञान होता है।
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