| जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू अरस्तूसुधीर निगम
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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…
 पांडुलिपियों की जोखिम भरी कथा यहीं समाप्त नहीं हो जाती। जब रोमन सेनापति सुला ने ईसा पूर्व 84 में एथेंस पर अधिकार स्थापित किया वह अपैलीकोन के पूरे पुस्तकालय को लूटकर अपने साथ रोम ले गया। संस्कृति के इस नए केन्द्र रोम में दर्शन के एक प्रखर अध्येता रोड्स निवासी आंद्रोनिकोस ने उपलब्ध पांडुलिपियों को क्रमबद्ध करके अरस्तू और थियोफ्रेस्तोस की कृतियों के पूर्णतः नवीन संस्करण प्रकाशित किएं। सिसरो (ईसा पूर्व 106-43) अपने ग्र्रंथों मंम अरस्तू के ग्रंथों का उल्लेख करता है। इस प्रकार रोमन साम्राज्य में अरस्तू के अध्ययन की एक परम्परा का जन्म हुआ। 
 
 अरस्तू के अध्ययन की दूसरी परंपरा पूर्व में स्थापित हुई। सिकंदरिया में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से ही दार्शनिकों की जीवनियां एकत्र की जा रही थीं और उनके ग्र्रंथों की सूचियां बनाई जा रही थीं। इसी परम्परा में अमोनियस सैक्काज (ईसवी सन् 166-242) की शिक्षाओं से प्लेटो के दर्शन का एक रूप विकसित हुआ जिसमें प्लेटो और अरस्तू की शिक्षाओं का मिश्रण हो गया। इस केन्द्र से बहुत-सी शिक्षाएं जो प्लेटो की थीं अरस्तू के नाम से प्रचलित हो गईं।
 
 सिकंदरिया से ही, छठी शताब्दी में अरस्तू के कुछ ग्रंथ परसिया पहुंचे और वहां उनका अरबी अनुवाद हुआ। खुसरो नौशेरवां ने ई0 सन् 529 में सात नवप्लेटोवादियों को अपने यहां शरण दी। उनकी सहायता से अरस्तू के तर्कशास्त्र का अरबी में अनुवाद किया गया। यह परम्परा चलती रही और नवीं शताब्दी में अनुवाद का काम बहुत जोर-शोर से प्रारंभ हुआ। याइबन-बितरीक ने अरस्तू की मीटीओरोलाजिका (नक्षत्र विज्ञान की पुस्तक) तथा उनकी जंतु विज्ञान, मनोविज्ञान और भौतिक शास्त्र की पुस्तकों के अनुवाद किए। इसी शताब्दी में अल-हिंसी ने अरस्तू की सोफिस्टिस एलेंकिस का अनुवाद किया। अल्-किंदी ने, नवीं शताब्दी में, अरस्तू के दर्शन का अनुवाद प्रकाशित किया। इस प्रकार अरस्तू का इस्लामी दार्शनिकों के क्षेत्र में काफी प्रचार हो गया। 
 
  परसिया से अरस्तू के अध्ययन की एक लहर, इस्लामी दार्शनिकों के साथ-साथ, स्पेन पहुंची। इब्नरुश्द (ई0 सन् 1126 से 1198), जिसे पाश्चात्य लेखक एव्रोज कहते हैं, कार्डोवा में उत्पन्न हुआ था। उसने धर्मशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, गणित और दर्शन का अच्छा अध्ययन किया था। खलीफा अबू याकूब के कहने से उसने अरस्तू के ग्रंथों का विवेचन किया था। ईसा की 13वीं शताब्दी में इब्नरुश्द के ग्रंथों का लेटिन भाषा में अनुवाद होने से यूरोप को अरस्तू का पता चला।
 			
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