जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू अरस्तूसुधीर निगम
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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…
दार्शनिकों की जमात : अरस्तू, प्लेटो, सुकरात
सबसे पहले अरस्तू के विचारों को एकदम संक्षेप में जान लेते हैं :
1. विचार या चिंतन से ही सृष्टि की समूची स्थिति समझी या जानी जा सकती है।
2. केवल तर्क द्वारा ही सत्य का निरूपण हो सकता है।
3. प्रकृति, पदार्थ तथा संसार की सभी चीजों में अद्भुत परिवर्तनशील गति है।
4. अच्छा क्या है, सच्चाई क्या है इसका निरूपण बौद्धिक विश्लेषण से हो सकता है।
अरस्तू के विचारों ने यहूदी धर्म-गुरु तथा ईसाई धर्म को भी प्रभावित किया था। ईसा पूर्व 115 से सन् 45 के काल में सिकंदरिया के यहूदी धर्म गुरु फ्रितो जूडियास ने अरस्तू के तर्कों से अपने धर्म की महत्ता प्रतिपादित की थी। ईसाई धर्म ने उससे सीखा था कि सत्य अपने स्थान पर अचल है, सत्य से सत्य का खंडन नहीं हो सकता। प्लेटो का कथन था कि सर्वोपरि एक ईश्वरीय सत्ता है तथा एक अखंड सत्य है। अरस्तू इसे नहीं स्वीकार करता था। उसकी दृष्टि में सृष्टि निरंतर परिवर्तनशील है, इसमें बराबर खोज करते रहना पड़ेगा। कोई अकाट्य सत्य निर्धारित नहीं हो सकता।
अरस्तू को व्यापक दृष्टि देने का श्रेय प्लेटो की अकादमी को है। वहां अरस्तू ने बीस साल तक अध्ययन, मनन, विचारण, अन्वेषण किया था। प्लेटो अपने समय का सबसे विद्वान दार्शनिक था और अरस्तू तो सैकड़ो वर्षों तक पश्चिम जगत द्वारा भुला दिया गया था पर प्लेटो के विचारों का संध्याकाल कभी नहीं आया। प्लेटो का जन्म ईसा पूर्व 428 में हुआ था। वह देवकुल का था। उसके पूर्वज पोडीसिन देवता (प्रजापति का अपभ्रंश) से उत्पन्न माने जाते थे। उसका उस समय के अद्भुत दार्शनिक सुकरात से बहुत साथ रहा यद्यपि उसे सुकरात का चेला कहना उचित नहीं होगा। वे सुकरात का बड़ा सम्मान करते थे। उनसे बहुत प्रभावित भी थे। अपनी रचनाओं में कहीं-कहीं उन्हें ‘मास्टर’ भी कहा है पर यदा-कदा ‘मित्र’ भी लिखा है।
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