जीवनी/आत्मकथा >> अरस्तू अरस्तूसुधीर निगम
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सरल शब्दों में महान दार्शनिक की संक्षिप्त जीवनी- मात्र 12 हजार शब्दों में…
प्लेटो और सुकरात के साथ अरस्तू पश्चिमी दर्शन का संस्थापक माना जाता है। उसकी स्थापनाओं से प्रभाव ग्रहण कर आधुनिक पश्चिमी दर्शन में नैतिकता, सौंदर्य, तर्क, विज्ञान, राजनीति, आधिभौतिकी को स्थान देकर उसे सर्वतोन्मुखी बनाया जा सका है।
उसकी ‘राजनीति’ ने आधुनिक राजनैतिक दर्शन की आधार-शिला रखी। उसकी भौतिक विज्ञान संबंधी स्थापनाओं ने मध्ययुगीन विद्वानों को प्रभावित किया और यह प्रभाव पुनर्जागरण काल तक विद्यमान रहा। न्यूटन के नियम ही उसे स्थानापन्न कर सके। प्राणी विज्ञान संबंधी उसके विचार 19वीं शताब्दी तक ग्राह्य रहे। तर्कविद्या के रूप में अरस्तू ने उस प्रणाली को जन्म दिया जिसके माध्यम से ‘सृष्टि’ को समझा जा सकता है। उसके तर्क-सिद्धांतों ने आधुनिक औपचारिक तर्क प्रणाली को प्रभावित किया। उसने अपने तर्कशास्त्र के सिद्धांत लिखे। उसके तर्क और विचार के नियम कुछ संशोधनों के साथ आज भी स्वीकार किए जाते हैं।
अरस्तू के साहित्य-शास्त्र ने त्रासद नाटकों में संकलन ‘त्रयी’ की अवधारणा प्रथम बार प्रस्तुत की। उसके निबंध ‘आन दि सोल’ ने उस मनोविज्ञान की आधारशिला रखी जिससे आज हम परिचित हैं। वह जीव विज्ञान का प्रणेता था जिसमें विचार संगति का नियम सर्वप्रथम प्रतिपादित किया गया और वह ऐसे विचारों का जनक बना जिन्हें आज भी बिना किसी संकोच के स्वीकार किया जाता है। आधिभौतिकी के उसके सिद्धांतों ने मध्य युग की इस्लामी और यहूदी परंपराओं के दार्शनिक और धार्मिक पक्ष पर प्रभूत प्रभाव डाला-विशेषकर कैथोलिक चर्च की शिक्षा संबंधी परंपराओं पर।
अरस्तू-दर्शन के सभी पहलू आज के सक्रिय अकादमिक अध्ययन में अनुस्यूत पाए जाते हैं। प्लेटो से अधिक सुव्यवस्थित अरस्तू को यूनानी दर्शन के इतिहास में सबसे अधिक व्यवस्थित दार्शनिक माना जाता है। उसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान नैतिक दर्शन के क्षेत्र में है। नीतिशास्त्र का अध्ययन करने वाले किसी भी अध्येता के लिए उसके ग्रंथ का अध्ययन करना आवश्यक है।
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