जीवनी/आत्मकथा >> अकबर अकबरसुधीर निगम
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धर्म-निरपेक्षता की अनोखी मिसाल बादशाह अकबर की प्रेरणादायक संक्षिप्त जीवनी...
जिस वक्त हुमाऊँ शेरशाह सूर से हारकर अपने भाई हिंदाल के पास सिंध में था तभी उसने हिंदाल के शिक्षक की रूपवती कन्या हमीदा बानू बेगम को देखा था। पता नहीं प्यार की कौन-सी अनजानी लहर उठी कि उसे पाने की तमन्ना उसके मन में जाग पड़ी। परिवारी जनों की कोशिशों से 21 अगस्त 1541 को उन दोनों का निकाह हो गया। हिंदाल इस रिश्ते से खुश नहीं था। वहां से निकलकर हुमाऊँ अमरकोट के राणा वीरसाल के पास पहुंचा। उस समय बेगम उम्मीद से थी।...
वीरसाल ने दो संदेशवाहक-घुड़सवार और ऊंटसवार-बेटे के जन्म का शुभ समाचार देने के लिए हुमाऊँ के पास भेज दिए। हुमाऊँ, सेना सहित, ठट्ठा देश को दबाने के लिए कूच कर चुका था और इस समय 16 मील (लगभग 26 कि.मी.) दूर पड़ाव डाले पड़ा था। संदेहवाकों ने सुमुख संदेश सुनाया। पुत्र जन्म का समाचार मिलते ही उसने जमीन पर माथा टेक कर ईश्वर को धन्यवाद दिया।
हुमाऊँ मां-बेटे दोनों को देखने के लिए बेताब हो उठा। वह खुद सेना को छोड़कर नहीं जा सकता था इसलिए उसने ख्वाजा मौज्जम नदीम कुकलताश और शमसुद्दीन गजनवी को उन्हें लाने के लिए भेजा। दो दिन बाद हमीदा बानू बेटे के साथ पालकी में अमरकोट से रवाना हुई। जब पालकी दो मंजिल दूर रह गई तो बेगम के खैरमकदम के लिए हुमाऊँ ने प्रधान अधिकारियों को भेजा।
संभावनाओं का संसार लिए पालकी सकुशल शिविर में आ पहुंची। हमीदा बानू ने उतरकर हिंदू-रीति से, बच्चे से हुमाऊँ के पैर छुवाए। उसने बच्चे को गोद में ले लिया। उसका प्रसन्न मुख और मुख के चहुंओर आलोक वलय देखकर हुमाऊँ ने विभोर होकर उसे चूमा और ईश्वर को शुक्रिया कहा। बालक की जन्मकुंडली बनाई गई और जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर व नसिरुद्दीन मुहम्मद हुमाऊँ के नामक्रम में बालक का नाम रखा गया जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर। राणा वीरसाल ने हिन्दू पद्धति से अकबर की जन्मकुंडली बनवाई। स्वतंत्र रूप से कई ज्योतिषियों ने जन्मकुंडलियां बनाईं। बड़े होने पर अकबर हिन्दू रीति से बनी जन्मकुंडली पर विश्वास करता रहा। हुमाऊँ सहित विभिन्न ज्योतिषियों द्वारा बनाई गईं सभी जन्मकुडलियां परस्पर मिलती थीं। जनश्रुति है कि तुलसीदास ने अकबर की जन्मकुंडली देकर कहा था, ‘‘यह रामजी का आदमी है, इस संसार में उन्हीं का काम करने आया है।’’
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