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बाल एवं युवा साहित्य >> आओ बच्चो सुनो कहानी

आओ बच्चो सुनो कहानी

राजेश मेहरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10165
आईएसबीएन :9781613016268

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किताबों में तो बच्चो की सपनों की दुनिया होती है।

अगले दिन तय समय अनुसार सुषमा आंटी ने कमला के ससुराल से उसके पति और ससुर को बुलाया यह कहकर कि आपको क्या-क्या सामान चाहिए हमें बता दें, वे दोनों तय समय से पहले ही आ गए और उनके चेहरे पर लालच साफ़ झलक रही था।

उनको स्वागत रूम में बैठाया और चाय-नाश्ता दिया। उसके बाद सुषमा आंटी उनके साथ बातें करने लगी और पूछा, "ऑंटी जी बताइये आपको क्या क्या चाहिए?"

आंटी जी कुछ कहती उससे पहले ही राजू तय रणनीति अनुसार भाग कर आया और बोला, "आंटी, कोई आदमी आपको बाहर बुला रहा है।"

सुषमा आंटी उनसे बोली, "जी, मैं अभी आई।" इतना कह कर वो राजू को लेकर बाहर आ गई। वहाँ पर योजना के अनुसार राजू के पापा के ऑफिस का एक व्यक्ति खड़ा था जिसको कि राजू के पापा ने सब समझा दिया था। योजना के अनुसार वे लोग इस तरह से खड़े होकर बात करने लगे कि उनकी आवाज कमला के पति और उसके ससुर के कानों में भी पड़े।

राजू के पापा के ऑफिस का व्यक्ति सुषमा आंटी से बोला, "बहिनजी, आपने जो किडनी बेचने को कहा था तो कल आप आ जाना। आपकी किडनी निकाल कर हम आपको पैसे दे देंगे। लेकिन बहिनजी आप ये किडनी क्यों बेच रही हो?"

इस पर सुषमा आंटी बोलीं, "क्या करू भाई साहब, मेरी बेटी का भात भरना है और उसके ससुराल वालों को कार व पैसा चाहिए इसलिये मैं अपनी किडनी बेच रही हूँ और यदि पैसे कम पड़े तो हो सके मुझे अपना खून भी बेचना पड़े क्योंकि अब मेरे घर में कोई कमाने वाला तो है नहीं।"

ये सब बाते अन्दर बैठे कमला के पति व ससुर भी सुन रहे थे। ये बाते सुनकर वो दोनों बहुत शर्मिंदा हुए और बाहर आकर बोले, "हमें आप माफ़ कर दीजिये। हमें कोई भात में कार नहीं चाहिए, आप तो केवल 101 रुपये से ही भात भर देना। आपने हमारी आँखे खोल दी और आगे भी हम कोई भात नहीं लेंगे।"

इस पर सुषमा आंटी के आँखों से आंसू निकल आये और वो बोली, "ये सब रास्ता इस छोटू राजू ने दिखाया है मैं भगवान से इसकी लम्बी आयु की कामना करती हूँ।"

उन लोगो ने भी राजू को आशीर्वाद दिया और भविष्य में न कोई दहेज़ और न भात लेने कि कसम खाई।

राजू के पापा गर्व से खड़े मुस्कुरा रहे थे।

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