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बाल एवं युवा साहित्य >> आओ बच्चो सुनो कहानी

आओ बच्चो सुनो कहानी

राजेश मेहरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10165
आईएसबीएन :9781613016268

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किताबों में तो बच्चो की सपनों की दुनिया होती है।

राजू इतना कहकर बीरू को लेकर हॉस्पिटल से बाहर आया। राजू और बीरू अपने मोहल्ले में पहुंचे और सबको खून देने को कहा ताकि बीरू के पापा कि जान बचा सकें। लेकिन कोई आगे नहीं आया और जो आगे आये उनके खून का ग्रुप अलग था। राजू ने अपने पापा को फ़ोन पर सारी बात बताई तो वो बोले, "तुम चिंता मत करो। मैं अपने ऑफिस से कुछ आदमी लेकर आता हूँ जो खून दान कर सकें।"

राजू ने सोचा यदि फिर भी खून कम पड़ गया तो, उसने अपने टीचर को फोन किया तो उसके टीचर ने भी दो-तीन आदमियों को भेजने का भरोसा दिलाया। राजू के पापा के दोस्त और टीचर के भेजे आदमियों को लेकर राजू और बीरू हॉस्पिटल पहुंचे। डॉक्टर ने तुरंत उनके खून की जांच की और खून लेना शुरू किया। शाम होते होते काफी खून इकट्ठा हो गया तो डॉक्टर्स ने उसमे से प्लेटलेट्स निकाल कर बीरू के पापा को चढ़ाना शुरू किया।

करीब दो घंटे बाद डॉक्टर मुस्कुराता हुआ आई.सी.यू. से बाहर आया और बोला, "मुबारक हो! मरीज की हालत में सुधार हो रहा है, लेकिन यदि खून से प्लेटलेट्स देने में थोड़ी और देरी हो जाती तो मरीज के साथ कुछ भी हो सकता था। राजू ने पापा के ऑफिस के आदमियों और टीचर के भेजे आदमियों का शुक्रिया कहा तो उनमें से एक आदमी बोला, "बेटा ये तो तुम्हारी मेहनत है जिससे कि तुमने सबको खून देने के लिए कहा वर्ना यदि तुम्हारे दोस्त की माँ और तुम्हारा दोस्त चुपचाप बैठे रहते तो कौन खून देने आता। इतना कह कर सब लोग राजू कि प्रशंसा करते हुए चले गए। वहाँ पर अब केवल राजू के पापा ही थे इस पर राजू के पापा बीरू से बोले, "बीरू ऐसे समय में झिझक नहीं करनी चाहिए और एक दूसरे को बताना चाहिए जिससे कि कोई मदद कर सके। यदि तुम आज भी राजू को अपने पापा की बीमारी के बारे में नहीं बताते तो कुछ भी हो सकता था।"

बीरू और उसकी माँ मुँह नीचे किये सब सुन रहे थे फिर बीरू की माँ बोली, "भाई साहब, आप सही कहते हो आगे से हम इस बात का ध्यान रखेंगे।"

राजू के पापा बोले, "बहनजी, इंसान ही इंसान के काम आता है।"

उसके बाद बीरू ने राजू को उसकी मदद के लिए थैंक्यू कहा तो राजू बोला, "यार, तू तो मेरा पक्का दोस्त है इसमें थैंक्यू कैसा ये तो मेरा फर्ज था।"

इसपर राजू के पापा बोले, "आओ बहनजी, अब सब ठीक हो जायेगा, बाहर थोड़ा सा चाय पी के आते हैं।" सब लोग चाय पीने निकल गए आज फिर राजू ने किसी की जान बचाई थी।

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