ई-पुस्तकें >> ऑथेलो (नाटक) ऑथेलो (नाटक)रांगेय राघव
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Othello का हिन्दी रूपान्तर
इआगो : क्यों, क्या बात है?
ऑथेलो : अब वह उतना सरल नहीं।
इआगो : यदि मैं कह देता कि मैंने उसे आपकी स्त्री के साथ अनाचार करते देखा है, तो क्या हो जाता! या उसे ऐसा कहते हुए ही सुन पाता? संसार में ऐसे धूर्त भी हैं जो आपकी हानि कर दें और या तो अपने स्वभाव के कारण या किसी वासनामयी स्त्री के कारण ही ऐसा कर बैठें...और फिर अपने पर काबू न रखकर उसकी इधर-उधर चर्चा भी करें।
ऑथेलो : क्या उसने कुछ कहा है?
इआगो : हाँ स्वामी, कहा है। किन्तु आप इसको भी पक्की मान लें कि वह कसम खाकर कह देगा कि उसने कभी कहा ही नहीं।
ऑथेलो : उसने कहा क्या है?
इआगो : मैं नहीं जानता देव, कि कैसे कह दूँ उसे!
ऑथेलो : क्या? क्या? रूमाल? स्वीकार किया रूमाल? यह सम्भव नहीं कि कैसियो और डैसडेमोना स्वीकार कर लें और दण्ड प्राप्त करें। अच्छा हो कि हम पहले उन्हें दण्ड दें तभी वे स्वीकार करेंगे। मैं तो काँप उठता हूँ। राह दिखाने को किसी वास्तविकता के बिना किसी की भावनाएँ इतने वासनामय आवरण में छद्म धारणा नहीं कर सकतीं कि वास्तविकता छाया-मात्र रह जाए... मुझे शब्द विचलित नहीं करते... नाक... कान... होंठ... क्या यह सम्भव है। बोलो... स्वीकार करो... रूमाल! शैतान...
(मूर्छित-सा हो जाता है)
इआगो : आह मेरी औषधि! कर, अपना काम कर! ऐसे ही तुच्छ मूर्खों को घेरा जाता है और ऐसे ही अनेक योग्य, पतिव्रता, निर्दोष स्त्रियों को दण्ड मिलता है। (कैसियो को आते हुए देखता है) स्वामी! अरे यह क्या हुआ!
मेरे स्वामी! ऑथेलो! बोलिए न!
(कैसियो का प्रवेश)
अरे कैसियो!
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