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ऑथेलो (नाटक)

रांगेय राघव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10117
आईएसबीएन :978161301295

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Othello का हिन्दी रूपान्तर

इमीलिया : तुम इसका क्या करोगे कि मुझसे बार-बार इसको लाने के लिए कहा करते थे?

इआगो : (छीनकर) तुम्हें उस सबसे क्या?

इमीलिया : यदि तुम्हारे लिए इसका कोई विशेष महत्त्व नहीं है तो मुझे लौटा दो! अगर उसे नहीं मिलेगा तो सचमुच पागल हो जाएगी।

इआगो : यह न कहना कि तुम्हें इसके बारे में कुछ भी पता है। मुझे इससे बहुत काम है। तुम जाओ, मुझे सोचने दो!

(इमीलिया का प्रस्थान)

मैं इस रूमाल को कसक के निवास-स्थान पर छोड़ आऊँगा और उसे यह मिलेगा। ईर्ष्यालु प्रकृति के लोगों के लिए बहुत ही साधारण बातें भी शास्त्रों की भाँति प्रमाण बन जाती हैं। इस रूमाल का गहरा प्रभाव पड़ सकता है। मेरे विषैले तर्कों से ऑथेलो फुँक ही रहा है। भयानक विचार तो वास्तव में विष की भाँति ही होते हैं। पहले तो पता नहीं चलता कि उनमें क्या भयानकता है किन्तु कुछ ही समय के बाद जब वे रक्त पर अपना प्रभाव डालते हैं तब गन्धक की भाँति सुलग उठते हैं। यह लो! वह आ ही रहा है।

(ऑथेलो का प्रवेश)

इआगो : कोई भी निद्रा के वशीभूत करनेवाली औषधि, कोई भी विस्मृत करनेवाली वस्तु अब मुझे कलवाली नींद वापस नहीं देगी।

ऑथेलो : कितना विश्वासघात! कितना धोखा!

इआगो : क्या है सेनानायक! सदा ही अपने विचार में उसी बात को क्यों रखते हो?

ऑथेलो : चले जाओ! तुम्हींने मुझे इस यातना में डाला है। धोखा खाते रहना उसकी जान लेने की तुलना में कहीं अधिक अच्छा है।

इआगो : क्यों स्वामी! क्या हुआ?

ऑथेलो : मुझे क्या पता चलता कि वह गुप्त रूप से अपनी वासना को कैसे शान्त करती है? न मैं कभी ऐसी बात को स्वप्न में भी सोच सकता था। मेरी तो इससे कोई हानि नहीं होती! मुझे अच्छी नींद आती, मैं प्रसन्न और मस्त रहता। मैंने तो कैसियो को उसका चुंबन लेते नहीं देखा था! यदि लुटनेवाले को पता ही न चले कि वह लुट रहा है, तो उसका न जानना ही अच्छा है और इस तरह वह लुटता ही नहीं।

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