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ऑथेलो (नाटक)

रांगेय राघव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 10117
आईएसबीएन :978161301295

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Othello का हिन्दी रूपान्तर

ऑथेलो : आह! मेरी आज्ञादायिनी स्वामिनी!

डैसडेमोना : मेरे प्रिय ऑथेलो!

ऑथेलो : अपने सामने तुम्हें देखकर मुझे अपार हर्ष हो रहा है। तुम मेरे प्राणों का आनन्द हो! यदि हर तूफान के बाद ऐसा सुख मिले, तो यह प्रचण्ड पवन तब तक चले जब तक मुर्दे करवटें न बदल डालें, कोई चिन्ता नहीं यदि उठती हुई लहरें आकाश में स्वर्ग को छू लें या नरक तक पृथ्वी के नीचे धँस जाएँ। यदि मुझे कभी मरना है तो मैं इस क्षण मर जाऊँ, क्योंकि इस क्षण मैं पूर्ण तृप्त हूँ और अज्ञात भविष्य में सम्भवत: ऐसी परितृप्ति कभी नहीं मिल सकेगी!

डैसडेमोना : ईश्वर न करे ये इच्छाएँ पूर्ण हों! जैसे-जैसे समय बीते, परमात्मा करे हमारा प्रेम और आनन्द परिवर्धित हो!

ऑथेलो : भाग्य के देवताओ! तथास्तु कहो! आज मैं ऊपर तक आनंदप्लावित हो गया हूँ। कैसे कहूँ! मेरा आनन्द तो शब्दों में समा नहीं पा रहा है! गिरा अनयन है, नयनों में वाणी नहीं है, मैं इस गूँगे की मिठास का वर्णन करूँ? (चुम्बन लेते हुए) यह...और यह...सच, यदि हमारे जीवन में टकराहट हो तो यही उसका रूप हो...* (* अर्थात् चुम्बन ही टकराहट का रूप हो।)

इआगो : (स्वगत) इस समय तो तुम्हारे तार मिले हुए हैं, लेकिन मैं तो इस सामंजस्य को तोड़ ही दूँगा, फिर देखना कैसा बेसुरा राग निकलता है। मैं झूठ नहीं कहता, ईमानदार आदमी हूँ।

ऑथेलो : चलो, दुर्ग की ओर चलें। मेरे पास बड़ी खुशखबरियाँ हैं। हमारा युद्ध समाप्त हो गया है और तुर्क डूब गए हैं। मेरे मित्रो! द्वीप के निवासियो! आप लोग तो सकुशल हैं? प्रिये! साइप्रस की प्रजा तुम्हें बड़ा स्नेह और सम्मान देगी। यह सदैव मुझे बहुत चाहती है। प्रियतमे! मैं वाचाल हो गया हूँ और अपने ही सुखों में रम गया हूँ न, कि मुझे कुछ ध्यान नहीं रहा! मेरे अच्छे इआगो! ज़रा खाड़ी तक चले जाओ और बक्स इत्यादि जहाज़ से उतरवा लो! जहाज़ के कप्तान को दुर्ग में ले आना। वह बड़ा योग्य और सम्माननीय व्यक्ति है। चलो डैसडेमोना, साइप्रस में तुमसे मिलकर आनन्द आ गया।

(ऑथेलो, डैसडेमोना और सेवकों का प्रस्थान; केवल इआगो और रोडरिगो रह जाते हैं)

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