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प्रेमचन्द की कहानियाँ 38

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :152
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9799
आईएसबीएन :9781613015360

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का अड़तीसवाँ भाग

प्रेमचन्द की सभी कहानियाँ इस संकलन के 46 भागों में सम्मिलित की गईं हैं। यह इस श्रंखला का अड़तीसवाँ भाग है।

अनुक्रम

1. विचित्र होली
2. विजय
3. विदाई
4. विदुषी वृजरानी
5. विद्रोही
6. विध्वंस
7. विनोद

1. विचित्र होली

होली का दिन था; मिस्टर ए.बी. क्रास शिकार खेलने गये हुए थे। साईस, अर्दली, मेहतर, भिश्ती, ग्वाला, धोबी सब होली मना रहे थे। सबों ने साहब के जाते ही खूब गहरी भंग चढ़ायी थी और इस समय बगीचे में बैठे हुए होली, फाग गा रहे थे। पर रह-रहकर बँगले के फाटक की तरफ झाँक लेते थे कि साहब आ तो नहीं रहे हैं। इतने में शेख नूरअली आकर सामने खड़े हो गये।

साईस ने पूछा- कहो खानसामाजी, साहब कब आयेंगे?

नूरअली बोला- उसका जब जी चाहे आये, मेरा आज इस्तीफा है। अब इसकी नौकरी न करूँगा।

अर्दली ने कहा- ऐसी नौकरी फिर न पाओगे। चार पैसे ऊपर की आमदनी है। नाहक छोड़ते हो।

नूरअली- अजी, लानत भेजो ! अब मुझसे गुलामी न होगी। यह हमें जूतों से ठुकरायें और हम इनकी गुलामी करें ! आज यहाँ से डेरा कूच है। आओ, तुम लोगों की दावत करूँ। चले आओ कमरे में आराम से मेज पर डट जाओ, वह बोतलें पिलाऊँ कि जिगर ठंडा हो जाय।

साईस- और जो कहीं साहब आ जायँ?

नूरअली- वह अभी नहीं आने का। चले आओ।

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