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प्रेमचन्द की कहानियाँ 6

प्रेमचंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9767
आईएसबीएन :9781613015049

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प्रेमचन्द की सदाबहार कहानियाँ का छटा भाग

प्रेमचन्द की सभी कहानियाँ इस संकलन में सम्मिलित की गईं है। यह इस श्रृंखला का छटा भाग है।

अनुक्रम

1. एक आँच की कसर
2. ऐक्ट्रेस
3. कजाकी
4. कप्तान साहब
5. कफ़न
6. करिश्मा-ए-इंतिकाम (अद्भुत प्रतिशोध)
7. कर्मों का फल

1. एक आँच की कसर

सारे नगर में महाशय यशोदानन्द का बखान हो रहा था। नगर ही में नहीं, समस्त प्रान्त में उनकी कीर्ति की जाती थी, समाचार पत्रों में टिप्पणियां हो रही थी, मित्रों से प्रशंसापूर्ण पत्रों का तांता लगा हुआ था। समाज-सेवा इसको कहते हैं ! उन्नत विचार के लोग ऐसा ही करते हैं। महाशय जी ने शिक्षित समुदाय का मुख उज्ज्वल कर दिया। अब कौन यह कहने का साहस कर सकता है कि हमारे नेता केवल बात के धनी हैं, काम के धनी नहीं हैं ! महाशय जी चाहते तो अपने पुत्र के लिए उन्हें कम से कम बीज हजार रुपये दहेज में मिलते, उस पर खुशामद घाते में ! मगर लाला साहब ने सिद्धांत के सामने धन की रत्ती बराबर परवा न की और अपने पुत्र का विवाह बिना एक पाई दहेज लिए स्वीकार किया। वाह ! वाह ! हिम्मत हो तो ऐसी हो, सिद्धांत प्रेम हो तो ऐसा हो, आदर्श-पालन हो तो ऐसा हो। वाह रे सच्चे वीर, अपनी माता के सच्चे सपूत, तूने वह कर दिखाया जो कभी किसी ने किया था। हम बड़े गर्व से तेरे सामने मस्तक नवाते हैं।

महाशय यशोदानन्द के दो पुत्र थे। बड़ा लड़का पढ़ लिख कर फाजिल हो चुका था। उसी का विवाह तय हो रहा था और हम देख चुके हैं, बिना कुछ दहेज लिये।

आज का तिलक था। शाहजहांपुर से स्वामीदयाल तिलक ले कर आने वाले थे। शहर के गणमान्य सज्जनों को निमन्त्रण दे दिये गये थे। वे लोग जमा हो गये थे। महफिल सजी हुई थी। एक प्रवीण सितारिया अपना कौशल दिखाकर लोगों को मुग्ध कर रहा था। दावत का सामान भी तैयार था ? मित्रगण यशोदानन्द को बधाईयां दे रहे थे।

एक महाशय बोले- तुमने तो कमाल कर दिया !

दूसरे- कमाल ! यह कहिए कि झण्डे गाड़ दिये। अब तक जिसे देखा मंच पर व्याख्यान झाड़ते ही देखा। जब काम करने का अवसर आता था तो लोग दुम लगा लेते थे।

तीसरे- कैसे-कैसे बहाने गढ़े जाते हैं-साहब हमें तो दहेज से सख्त नफरत है यह मेरे सिद्धांत के विरुद्व है, पर क्या करूं क्या, बच्चे की अम्मीजान नहीं मानती। कोई अपने बाप पर फेंकता है, कोई और किसी खर्राट पर।

चौथे- अजी, कितने तो ऐसे बेहया हैं जो साफ-साफ कह देते हैं कि हमने लड़के की शिक्षा-दीक्षा में जितना खर्च किया है, वह हमें मिलना चाहिए। मानों उन्होंने यह रुपये उन्होंने किसी बैंक में जमा किये थे।

पांचवें- खूब समझ रहा हूं, आप लोग मुझ पर छींटे उडा रहे हैं।

इसमें लड़के वालों का ही सारा दोष है या लड़की वालों का भी कुछ है।

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