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पाँच फूल (कहानियाँ)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8564
आईएसबीएन :978-1-61301-105

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प्रेमचन्द की पाँच कहानियाँ

कथाक्रम

1. कप्तान साहब
2. इस्तीफा
3. जिहाद
4. मन्त्र
5. फातिहा

कप्तान साहब

जगतसिंह को स्कूल जाना कुनैन खाने या मछली का तेल पीने से कम अप्रिय न था। वह सैलानी आवारा घुमक्कड़ युवक था। कभी अमरूद के बागों की ओर निकल जाता और अमरूदों के साथ माली की गालियाँ बड़े शौक से खाता। कभी दरिया की सैर करता और मल्लाहों की डोलियों में बैठकर उस पार के देहातों में निकल जाता। गालियाँ खाने में उसे मजा आता था। गालियाँ खाने का अवसर वह हाथ से न जाने देता। सवार घोड़े के पीछे ताली बजाना, एक्कों को पीछे से पकड़कर, अपनी ओर खींचना; बुड्ढों की चाल नकल करना—ये उसके मनोरंजन के विषय थे। आलसी काम तो नहीं करता, पर दुर्व्यसनों का दास होता है, और दुर्व्यसन धन के बिना पूरे नहीं होते। जगतसिंह को जब अवसर मिलता, तो घर के रुपये उड़ा ले जाता। नकद न मिले, तो बर्तन और कपड़े उठा ले जाने में भी उसे संकोच न होता था। घर में जितनी शीशियाँ और बोतले थीं; वह सब उसने एक-एक करके गुदड़ीबाजार पहुँचा दीं। पुराने दिनों की कितनी चीजें घर में पड़ी थीं, उसके मारे एक भी न बचीं। इस कला में ऐसा दक्ष और निपुण था कि उसकी चतुराई और पटुता पर आश्चर्य होता था। एक बार वह बाहर-ही-बाहर, केवल कार्निसों के सहारे अपने दो मंजिला मकान की छत पर चढ़ गया और ऊपर ही से पीतल की एक थाली लेकर उतर आया। घरवालों को आहट तक न मिली।

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